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(देव शिल्प)
(४२०) २२. विजयानन्द प्रासाद इसका निर्माण राजगिसुन्दर प्रासाद की भांति करें तथा भद्र के ऊपर एक उरुश्रृंग पुनः चढ़ायें।
श्रृंग संख्या कोण ८ प्ररथ १६ स्थ ८ भद्र उपरथ ८ प्रत्यंग ८ शिखर १
कुल ५७ विजयानन्द प्रासाद नौ अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिकर्ण, दो रथ, दो उपरथ तथा भद्र ।
२३. सांग तिलक प्रासाद इसका निर्माण विजयानन्द प्रासाद की भांति करें तथा भद्र के ऊपर से एक - एक उत्तश्रृंग करें तथा मत्ताबलम्ब बनाएं। इस मतावलाब के छाद्य के ऊपर दो श्रृंग रखें।
श्रृंग संख्या कोण प्ररथ
१६ रथ उपरथ प्रत्यंग भद्र के गवाक्ष १६ शिखर
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कुल
६५ सर्वांग तिलक प्रासाद नौ अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिकर्ण, दो रथ, दो उपरथ तथा भद्र।
२४. महाभीग प्रासाद
इसका निर्माण सांग तिलक प्रासाद की भांति करें तथा गवाक्ष वाले भद्र के ऊपर एक - एक उरुशृंग अधिक चढ़ायें।। महाभोग प्रासाद नौ अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिकर्ण, दो रथ, दो उपरथ तथा भद्र।
२५. मेरुप्रासाद इसका निर्माण महाभोग प्रासाद की मांति करें तथा प्रासाद के कर्ण, रथ, प्रतिरथ इन सबके रूपर एक एक श्रृंग अधिक बढ़ायें।
मेरु प्रासाद नौ अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिकर्ण, दो रथ, दो उपरथ तथा भद्र ।