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(देव शिल्प
(४१५) e.लोक्य भूषण प्रासाद इरायः। निर्माण विमानप्रासाद की भांति करें तथा उसमें प्रतिरथ के ऊपर एक एकः उरुश्रृंग अधिक बढ़ाएं। अंग संख्या
तिलक संख्या कोण ८
प्रस्थ प्रतिस्थ ८ भद्र प्रत्यंग ८ शिखर १
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कुल ४५ कुल ८ त्रैलोक्य भूषण प्रासाद पांच अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिरथ तथा भद्र ।
१०. माहेन्द्र प्रासाद
তে স্কা বিলে वर्गाकार तल के ८ भाग करें। इनमें कर्ण, प्रतिस्थ, उपरश्य तथा भद्रार्ध का एक एक भाग रखें ।भद्र का निर्गम १/२ भाग रखें।
ये सब अंग वारिमार्ग से युक्त करें। कर्ण, प्रतिरथ तथा उपरथ का निर्गम एक- एक 'माग करें।
शिखर की सजा भूल शिखर की चौड़ाई पांच भाग रखें। कर्ण के ऊपर दो- दो श्रृंग तथा एक- एक तिलक चढ़ायें। प्रतिरथ के ऊपर दो- दो श्रृंग चढ़ायें। उपरथ के ऊपर एक- एक श्रृंग चढ़ायें। भद्र के ऊपर तीन-तीन उरुश्रृंग चढ़ायें।
श्रृंग संख्या तिलक संख्या कोण. ८ कोण . ४ प्ररथ १६ उपरश्य भाद्र १२ शिखर
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४५ कुल ४ माहेन्द्र प्रासाद सात अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिस्थ, दो रथ तथा भद्रा माहेन्द्र प्रासाद
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