________________
(देव शिल्प
४१६) ११. रत्नशीर्ष प्रासाद इसका निर्माण माहेन्द्र प्रासाद की भांति करें तथा उसमें कर्ण के ऊपर तीन श्रृंग चढ़ायें।
श्रृंग संख्या कोण १२ प्रस्थ
१६ उपरथ
शिखर
-
-
-
-
-
-
-
-.
कुल ४९ रत्नशीर्ष प्रासाद सात अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिरथ, दो रथ तथा भद्र।
१२. सितश्रृंग प्रासाद इसका निर्माण स्नशीर्ष प्रासाद की भांति करें तथा उसमें भद्र के ऊपर दो उरुश्रृंग करें तथा एक मत्तावलम्ब (गवाक्ष) बनायें तथा उसके छाद्य के ऊपर दो श्रृंग चढ़ावें।
श्रृंग संख्या कोण १२
प्ररथ
उपरथ भट्र शिखर
१६
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
कुल
५३
सितश्रृंग प्रासाद सात अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिस्थ, दो रथ तथा भद्र।
१३. भूधरप्रसाद इसका निर्माण सितश्रृंग प्रासाद की भांति करें तथा उसमें उपरथ के ऊपर एक- एक तिलक चढ़ायें।
भूधर प्रासाद सात अंग वाला है :- दो कर्ण, दो प्रतिरथ, दो रथ तथा भद्र ।