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(देव शिल्प
(४०८० २३. पक्षिराज (गरुड़) प्रासाद
इसकी रचना राजहंरा प्रसाद की तरह करें। इसमें कोण के ऊपर का तिलक के स्थान पर श्रृंग चढ़ाये।
तिलक संख्या काण -दी ८ प्रस्थ नन्दी ८
श्रृंग संख्या कोण १२ प्रत्यंग ८ कर्णनदी ८ प्ररथ २४ प्ररथनन्दी ८ गद्रनन्दी १६ भद्र १६ शिखर १
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२४. वृषभ प्रासाद
तल का विभाग वर्गाकार शूमि के २२ भाग करें। दो भाग की बाहर की दीवार, दो भाग की परिक्रमा, दो भाग को गर्भगृह की दीवार तथा दस भाग का गर्भगृह करें।
भट्र के दोनों तरफ दी १-१ भाग, प्रतिस्थ (स्थ, उपरथ, प्रतिस्थ) कर्ण, भद्रार्ध २-२ भाग करें। बाहर के अंगों में कोण, प्रतिस्थ, रथ तथा उपरथ्थ प्रत्येक दो- दो भाग की चौड़ाई रखें । भद्र नन्दी एक भाग तथा पूरा भद्र चार भाग का रखें । भद्र का निर्गम एक भाग का रखें । शेष सभी अंग समदल बनाएं।
शिखर की सजा शिखर की चौड़ाई के सोलह भाग करें। कोणों के ऊपर दो श्रृंग तथा एक तिलक चढ़ायें। प्रस्थ के ऊपर दो श्रृंग उसके ऊपर तीन तीन भाग का प्रत्यंग चढ़ायें। रथ्य के उपर तीन श्रृंग, उपरथ के ऊपर दो - दो श्रृंग चढ़ायें। भद्र नन्दी के ऊपर एक श्रृंग चढ़ायें । भद्र के ऊपर चार उरुश्रृंग चढ़ायें।
पहला उरुश्रृंग आठ भाग का, दूसरा छह भाग का, तीसरा चार भाग का तथा चौथा दो भाग का