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(देव शिल्प २०. मुकुटीग्ज्वल प्रासाद
तल का विभाग वर्गाकार भूमि के बौस भाग करें।
दो भाग का कोण, डेढ़ भाग की नन्दी, दो भाग का प्ररथ, डेड भाग का -न्दी. एक
भाग की भद्र नन्दी, चार भाग भद्र की चौड़ाई रखें। भद्र का निर्गम एक भाग रखें। दो भाग बाहर की दीवार, दो भाग थी परिक्रमा, दो भाग गर्भगृह की दीवार, तथा आठ भाग का गर्भग्रह रखें।
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शिखर की सज्जा रेखा का विस्तार चौदह भाग रखें। कोने के ऊपर दो श्रृंग एक तिलक रखें, कण नन्दी पर एक श्रृंग एक तिलक रख प्रत्यंग के ऊपर तीन श्रृंग रखें, प्ररथ के ऊपर तीन श्रृंग रखें, नन्दी के ऊपर एक श्रृंग तथा एक तिलक रखें, भद्र नन्दी के ऊपर एक श्रृंग बढ़ायें, भद्र के ऊपर चार भंग चढ़ायें।
पहला उरुश्रृंग सात भाग का, दूसर। उस्श्रृंग छह माग का तथा तीसरा उरुश्रृंग पांव भाग का तथा चौथा उरुश्रृंग दो भाग का रखें। श्रृंग संख्या तिलक संख्या कोण ८ कोण ४ प्रत्यंग कर्ण नन्दी ८ कर्णनन्दी ८ प्ररथ नन्दी र प्रस्थ नन्दी ८ भट्रनन्दी
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मुकुटोज्दल प्रासाद
शिखर
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