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(देव शिल्प
(४०५) १७. वैडूर्य प्रासाद इसका निर्माण रत्नकूट प्रासाद के अनुसार ही किया जाता है इसमें कोण के ऊपर से तिलक के स्थान पर उसके एवज में एक तीसरा उरुश्रृंग चढ़ायें। श्रृंग संख्या
तिलक संख्या कोना १२ कर्णनन्दी
१६ प्रत्यम ८ प्रतिरथ नदी प्रतिरथ २४ भद्रनन्दी भद्रनन्दी ८ भद्र १ शिखर १
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कुल
६९
कुल
४०
१८. पवाराग प्रासाद
वैद्य प्रासाद में कोण के ऊपर के तीसरे श्रृंग के स्थान पर तिलक चढ़ायें। भद्र नन्दी के ऊपर एक तिलक एक श्रृंग के एवज में दो श्रृंग करें। श्रृंग संख्या
तिलक संख्या कोण ८
कोण ४ प्रत्यंग ८ कर्णनन्दी १६ प्रतिस्थ २४ प्रतिस्थ नन्दी १६ भद्रनन्दी १६ भद्र १६ शिखर १
कुल ७३ कुल ३६
१.वकाक प्रासाद इसकी रचना पद्मराग प्रासाद की तरह करें किन्तु इसमें कोण के तिलक के बदले श्रृंग चढ़ायें। श्रृंग संख्या
तिलक संख्या कोन १२ कर्णनन्दी १६ प्रत्यंग ८ प्रतिरथ नन्दी १६ प्रतिरथ २४ भद्रनन्दो १६ भद्र १६ शिखर १
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कुल
७७
कुल