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(देव शिल्प
कहलाती हैं -
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अब इन दिशाओं के मध्य कर्ण रेखा से अन्य चार दिशाओं का ज्ञान होता है, ये विदिशायें
ईशान
आग्नेय
नैऋत्य
उत्तर एवं पूर्व के मध्य.
पूर्व एवं दक्षिण के मध्य
दक्षिण एवं पश्चिम के मध्य
पश्चिम एवं उत्तर के मध्य
वायव्य
इन्हीं दिशाओं एवं विदिशाओं के आधार पर सारे विश्व में दिशाओं का निर्देश किया जाता है।