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(देव शिल्प)
दिया प्रकरण
दिशा शब्द से सर्व साधारण जन परिचित हैं। दिशा से तात्पर्य है किसी विशेष बिन्दु की अपेक्षा अन्य वस्तु की स्थिति, जो सीधे में दर्शाया जाये। ऐसा करने के लिये किसी स्थायी आधार की आवश्यकता होती है जिसको अपेक्षा करके सभी पदार्थों की दिशा का ज्ञान किया जा सके ।
सूर्योदय प्रतिदिन एक निश्चित स्थिति से होता है। सूर्योदय की अपेक्षा व्यवहार में आकाश प्रदेश पंक्तियों की दिशा का निर्धारण किया जाता है।*
यदि दिशा को परिभाषित करना हो तो प्राचीन ग्रन्थ धवला में आचार्य श्री ने कथन किया है कि - अपने स्थान रो बाण की भांति सीधे क्षेत्र को दिशा कहते हैं । ये दिशायें छह होती हैं क्योंकि अन्य दिशाओं का होना सम्भव नहीं है। ये हैं-- सामने, पीछे, दायें, बायें, ऊपर, नीचें।'* *
जब हम पृथ्वी एवं सूर्योदय की अपेक्षा दिशाओं का निर्धारण करते हैं तो निम्न लेखित स्थिति बनेगी :
यदि सूर्योदय की ओर मुख करके खड़े हों तो
सागने की दिशा - पूर्व पीछे की दिशा - पश्चिम बाये की दिशा
उत्तर दाहिने की दिशा
दक्षिण ऊपर की दिशा
ऊर्च नीचे की दिशा
अधो ईशान
आग्नेय
उत्तर
दक्षिण
वायव्य
पश्चिम
नैऋत्य
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* स.सि.!'५/३/२६९/१०
"ध./५/१, ४.५३/२२६/४