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(देव शिल्प
सूत्रधारकअष्टपत्र
सूत्रधार वास्तु निर्माण के लिये आट उपकरणों की सहायता प्रमुखता रो लेता है। इनका उल्लेख इस प्रकार है :१. दृष्टि सूत्र
हस्त
काराक ५. अवलम्ब
६. काष्ठ ७. सृष्टि या साधनी
८. विलेख्य १. दृष्टि सूत्र के अंतर्गत नेत्रों से ही औजारों जित-मा काम लेकर सही नाप जोख कर लिया जाता है।
२. हस्त से तात्पर्य एक पट्टी से है जो एक हाथ के नाप की होती है। इसके नौ भाग होते हैं जिनके अधिष्ठाता देवों के नाम इस प्रकार हैं -
रुद्र, वायु, विश्वकर्मा, अग्नि, बहाा, पाल, रुग, सोम, विष्णु।
वर्तमान में आधुनिक शिल्पी हस्त या गजे का प्रमाण दो फुट तथा अंगुल का प्रमाण एक इंच से करते हैं। प्राचीन शैली के वास्तु के ||प इसी अनुपात से इंच फुट में बदलकर निर्माण करना उपयुक्त है। यह विधि सरल एवं व्यावहारिक भी है।
३. मुंज से तात्पर्य गूंज घास की बनी डोरी से है जिराके आधार से लम्बी सरल रेखा खींची जा सकती है। दीवाल को सरल रेखा में बनाने के लिए एक छोर से दूसरे छोर तक इसे बांधा जाता है।
४. कार्पासक से तात्पर्य कपास के गजबुत सूत से है जो अवलम्ब था राहुल (प्लबलाइन) लटकाने के काम आता है।
५. अवलम्ब से तात्पर्य साहुल या प्लम्ब लाइन से है जो लोहे का एक छोर लट्ट होता है। इसे सूत से लटकाकर दीवार की ऊंचाई अर्थात् ऊपर से नीचे की सीधाई नापी जाती है।
६. काष्ट से तात्पर्य गुनिया अथवा त्रिकोण से है जिससे कोण बनाने या नापने में सहायता ली जाती है।
७. सृष्टि या साधनी से तात्पर्य फर्श को समतल बनाने के लिये सहायक उपकरण से हैं जिसे स्पिरिट लेवल की तरह उपयोग किया जाता है। .
८. विलेख्य परकार (पेयर ऑफ डिवाइडर्स) से रेखाओं की दूरी तुल.त्मक दृष्टि से नापी जाती है।*
"सूत्राष्टकं दृष्टि गृहस्तमौजं, कामिकं स्वादवलम्बसप । काष्ठं च सृष्ट्याख्यमतो विलेध-मित्यष्टसत्राणि वदन्ति तज्ज्ञाः ।। रा. १/४०