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(देव शिल्प
प्रमाण दोषों के परिणाम १. जिन प्रासाद अगर प्रमाणों से हीन होता है तो अनपेक्षित परेशानियों का आगमन होता है। २. यदि प्रासाद की पीठ प्रमाण से हीन हो तो मन्दिर निर्माता को वाहन हानि एवं दुर्घटना की आशंका
होती है।
यदि मन्दिर के रथ उपरथ आदि अंग प्रमाण से हीन हों तो प्रजा/ समाज को पीडादायक होता है। . यदि प्रासाद की जंघा प्रमाण से हीन हो तो मन्दिर निर्माता एवं समाज को हानिकारक होता है। ५. यदि मन्दिर का शिखर प्रमाण से हीन अर्थात् कम ऊंचा हो तो पुत्र - पौत्र धन की हानि तथा रोगों की
उत्पत्ति होती है जबकि प्रमाण से अधिक बनाया गया शिखर निर्माता के लिए कुलहानि कारक होता है। ६. यदि मन्दिर में द्वार मान से होन होवें तो धन क्षय होता है। ** ७. यदि स्ताम अपद में हो तो रोगोत्पत्ति होती है। ८.. यांदे स्तम्भ का मान चौड़ाई अथवा ऊंचाई में हीन हो लो मन्दिर निर्माता का विनाश होता है।
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*रधोपश्यहीजे तु प्रजापोड़ा विनिर्दिशेत् । कर्णहीले सरागारे फलं वापि न लभ्यते ।। प्रा.६.८/२४ जंयाहीले हरेद बन्ज कर्तृकारापरादिकान्। शिखरे होनमाने तु पुत्रपौत्र धनक्षदः ।। प्रा. म.८/२५ अतिदीर्ध कुलच्छेदो हस्ये व्याधिर्टिनिर्दिशेद। तस्माच्छास्त्रोक्तपान सुखटं सर्वकापटं ।। प्रा. पं. ८/२६ दरहीने हनेच्येक्षुः जालीहीने यन.क्षयः। अपदे स्थापित स्तम्भे महारोग विनिर्टिशेत् । प्रा..८/२२. स्तम्भ चासोदये हीने का तत्र विनश्यति । प्रासादे पीठ है.जे तु नश्यन्ति भजवाजिनः ।। प्रा. म.८/२३ **अन्यथा च न कर्तव्य मानही न कारयेत। क्रियते बहीषाः स्य सिद्धिरा उ जायते ।। शि.र. १२/१४.५ तिर्दोष. जायमाना स्थात शिल्पिदोषे महदभवम् । शास्त्रहीन न कर्टव्य स्दानिश्वर्दधनक्षयः ।। शि.र. १/१४८