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________________ (देव शिल्प तीर्थंकर प्रतिमा निर्णय जब यह निर्णय लिया जाता है कि जिनेन्द्र प्रभु का मंदिर निर्माण करना है तब यह भी गुनेश्चित किया जाता है कि मंदिर के मूल नायक कौन से तीर्थंकर होंगे। मूल नायक के नाम से ही मंदिर का नाम प्रचलित होता है। प्रतिष्टा ग्रन्थों में इस विषय में स्पष्ट निर्देश उपलब्ध होते हैं। तीर्थंकर प्रभु की राशि का मिलान प्रतिमा स्थापनकर्ता की राशि से किया जाता है। साथ ही तीर्थंकर प्रभु की राशि का गिलान नगर या ग्राम के नाम की राशि से भी किया जाता है। इसके साथ ही यह राशि मिलान तीर्थंकर की नवांश राशि से भी किया जाता है। इस विषय में विद्वान प्रतिष्टाचार्य के साथ ही परमपूज्य आचार्य परमेष्टी अथवा साधु परमेष्ठी से विनय पूर्वक निवेदन करके समुचित मार्ग-दर्शन लेना चाहिए, तभी किन्न तीर्थंकर को मूल नायक बनाना है यह निर्णय करना चाहिए। सामान्य रुप से देखने में आता है कि समाज अथवा मंदिर निर्माणकर्ता इस तथ्य का विचार किये बिना हो मूल नायक का निर्णय कर लेते हैं। ऐसा करने से समाज को अपेक्षित पुण्य लाभ नहीं मिल पाता एवं धर्म का अतिशय भी प्रकट नहीं होता। जिनेन्द्र प्रभु का मंदिर न सिर्फ उपासक के लिए वरन सारे नगर के लिए पुण्य वर्धक होता है। अतएव नगर, मंदिर निर्माणकर्ता तथा मूल नायक प्रभु तीनों का राशि मिलान अवश्य ही करना चाहिए। यदि प्रतिमा स्थापनकर्ता धर्मानुरागवश किसी विशिष्ट तीर्थकर की प्रतिमा स्थापित करना चाहता है तथा राशि मिलान नहीं हो रही है तो ऐसी स्थिति में उन तीर्थंकर की प्रतिमा को मूल नायक नहीं बनाना चाहिए, अन्य वेदी में उन तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापित करना चाहिए। जिन मंदिरों में मूल नायक का पद तीर्थंकर को ही देना चाहिए तथा उन्हीं के यक्षयक्षिणी की स्थापना श्रेयरकर है। भरत, बाहुबली, राम, हनुमान, गुरुदत्त इत्यादि मोक्षगामी महापुरुषों के स्वतंत्र मंदिर बनाने के बजाय तीर्थंकर मूल नायक के साथ इन्हें स्थापित करना चाहिए। राशि मिलान एवं नवांश राशि मिलान का चक्र अनलिखित है। किसी भी संशय की स्थिति में पूज्य गुरुजनों से मार्गदर्शन लेकर निर्णय करना चाहिए।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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