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________________ देव शिल्प वास्तु दोषों के अन्य भेट @ भिन्न दोष- ये ४ प्रकार के हैं। © मिश्र दोष ये ८ प्रकार के हैं। 3 महामर्म दोष- ये दो प्रकार के हैं, जाति भेद एवं छन्द भेद — - जाति भेद प्रासाद की अनेकों जातियों में से पीठ एक जाति की बनायें तथा शिखर आदि अन्य जाति के बनायें तो इसे जाति भेद कहते हैं। इसे महामर्म दोष की संज्ञा दी गयी है। ३७० छन्द भेद पाद एवं मन्दिर में छत नहीं करना चाहिये। जैसे छन्दों में गुरु लघु यथा स्थान न होने पर छंद दूषित होता है उसी प्रकार प्रासाद की अंग विभक्ति शास्त्र नियमानुसार न करने पर प्रासाद दूषित होता है। ऐसा दोष रहने पर स्त्री मृत्यु, शोक, संतान होता है तथा पुत्र, पति एवं धन का क्षय होता है।' मन्दिर वास्तु का निर्माण करते समय यदि पद लोप, दिशा लोप अथवा गर्भलोप होवे तो मन्दिर निर्माता तथा निर्माणकर्ता (बनाने वाला तथा बनवाने वाला) दोनों ही अधोगति को प्राप्त होते हैं। जिनालय में स्तम्भों के पाषाणों का थर भंग होने पर मन्दिर के शासन देव कुपित होते हैं तथा शिल्पी का क्षय होता है। मन्दिर बनवाने वाला भी मृत्यु को प्राप्त होता है। अतएव शास्त्र विधि से रहित देवालय कदापि न बनवायें अन्यथा वे कल्याणकारी नहीं होंगे। प्रमाण दोष यदि मन्दिर का निर्माण शास्त्रोक्त विधि से सही प्रमाणों में किया जाता है तो वह मन्दिर निर्माता तथा समाज के सभी के लिये सुफल दायक एवं पुण्यवर्धक होता है। किन्तु यदि यही निर्माण प्रमाण से विरुद्ध कम ज्यादा किया है तो नाना प्रकार के संकटों का कारण बनता है। प्रमाण से युक्त मन्दिर आयु, सौभाग्य एवं पुत्र पौत्रादि संतति दायक होता है। यदि यह मन्दिर प्रमाण रो हीन हो तो महान भयोत्पादक होता है। * छन्द भेदो न कर्तव्यः प्रासाद पठ मन्दिरे । स्त्री मृत्यु शोक संतापः पुत्र पति धन्क्षवः । शि. २.५ / ४७ छन्द भेदी न कर्तव्यां जातिर्भदो वा पुनः । उत्पले महापर्व जाति भेद कृते सति । प्रा. मं. ८/२१ पद लोप, दिशा लोपं, गर्भ लोपं स च । उभयौ तौ नरकं याता स्थापक स्थपक सदा । शि.र. ५/१५२ **मान प्रमाण संयुक्ता शास्त्र दृष्टिश्च कारयेत आयुः पूर्णश्च सौभाग्यं लभते पुत्र पौत्रकम् ।। शि. २. ५ / १४४ दीर्घे नानाधिके इस्ते वचःपि सुरालये । छन्द भेदे जाति भेदं ही पाजे महद्भटम् । प्रा. मंजरी / १६० शास्त्रं मन्दिरं कृत्वा प्रजा राजगृह तथा । दोहनशुभं गेहं श्रेयस् तत्र न विद्यतं ।। 454
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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