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(देव शिल्प
अपशकुन एवं अशुभ लक्षण
ज्योतिष शास्त्र में शकुन विचार का अपना महत्व है, इनके विपरीत असर देखने में आते हैं। अतः मंदिर परिसर में निम्नलिखित लक्षण उपस्थित होने पर उनका परिहार करना चाहिये - १. मन्दिर में मधुमक्खी का छत्ता लगने पर, कुकुरमुत्ता होने पर तथा खरगोश के प्रवेश करने पर अर्धवर्ष
अर्थात छह माह का दोष रहता है। गिद्ध पक्षी, कौआ, उल्लू, चगगादड़ मन्दिर में प्रवेश करें तो पंद्रह दिन तक दोष रहता है। मन्दिर में गोह प्रवेश करने पर तीन माह तक दोष रहता है। इन दोषों के होने पर मन्दिर में पुनः शान्ति (शान्तिविधान एवं हवन) करवाना उपयुक्त हैं। प्रासाद की छत पर, झरोखों में, दरवाजे पर अथवा दोवारों पर यदि एकाएक टिड्डियां अथवा मधुमक्खियां
आकर गिर जाती हैं तो भय, शोक, कलह, जनहानि इत्यादि कष्ट हो सकते हैं। ३. यदि मन्दिर में उल्लू या बाज पक्षी घोंसले बनाकर रहने लगते हैं तो इससे समाज में दरिद्रता आती है। ४. यदि मन्दिर में बिल्ली अथवा कुतिया प्रसव कर देवे तो समाज के वरिष्ठ सदस्य की मृत्यु की सम्भावना
होती है। यदि अग्नि के बिना ही मन्दिर में धुएं जैसा वातावरण प्रतीत हो तो इससे समाज में कालह एवं अशान्ति
का वातावरण बनता है। ६. यदि कौआ हड्डी-गांस मन्दिर में गिराता है तो समाज में अमंगला, दिया हो की आशंका न पनिार
में चोरी की सम्भावना होती है। ७. मन्दिर का कलश अथवा ध्वज यदि अचानक टूटकर गिर जाये तो मन्दिर एवं समाज में अनेकों उपद्रव
होने की संभावना रहती है। यांदे मन्दिर का मुख्य द्वार अचानक गिर जाये तो यह महान अनिष्ट कारक है तथा समाज के प्रमुख या
वरिष्ठ व्यक्ति के मरण का संकेत समझना चाहिये । ९. यदि मार्ते एवं मन्दिर में से अकस्मात् जलधारा बहती हुई दिखाई दे तो यह राष्ट्र विप्लव की ओर संकेत
करता है। ५०. यदि ऐसा आभारा हो कि देवप्रतिमा नाच रही है, रो रही है, हंस रही है अथवा नेत्रों को खोल बन्द कर
रही है तो समझना चाहिये कि महा भय है। यह अत्यंत अशुभ संकेत है। *
अशुभ लक्षण आने की स्थिति में आंवेलम्ब उसका परिहार करने का यत्न करें। आचार्य परमेष्टी अथवा साधुगण अथवा उपयुक्त विद्वान से परामर्श कर धर्म क्रिया कर इसका परिहार करना चाहिये।
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*जतन रोदनं हास्यमुभीलमनिमीलने । देवा या प्रकुर्वन्ति तत्र दिघान्महाभवम् ।। पं. १/१९