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________________ देव शिल्प 268 गृहवास्तु की ऊंचाई से दूनी तथा एन्जिर की ऊंचाई से चौगुनी भूमि को छोड़कर कोई वेध हाँ तो उनका दोष नहीं माना जाता । यदि किसी कारण दक्षिण अथवा पश्चिमाभिमुखी मंदिर बनाये गये हों तो इसका समाज एवं मंदिर नियंता दोनों पर विपरीत प्रभाव होता है। इस अनिष्ट का परिहार करना अत्यन्त आवश्यक है। दक्षिणाभिमुखी मंदिर के ठीक सामने उसी देव का उत्तराभिमुखी मंदिर बनायें तो दोष का परिहार हो जाता है । इसी भांति पश्चिमाभिमुखी मंदिर के समक्ष यदि उसी देव का पूर्वाभिमुखी मंदिर बनाया जाये तो वैध दोष परिहार हो जाता है। इन दोनों मंदिरों का एक परिसर में होना आवश्यक है यदि मध्य में राजमार्ग होगा तो परिहार नहीं होगा। द्वार वेध विचार मुख्य द्वार के समक्ष जो स्थिति अथवा संरचना वास्तु के लिए अकल्याणकारी होती है उसे द्वार वैध कहते हैं। वैधों को निर्णय करने के उपरान्त उनका निराकरण करना अत्यंत आवश्यक है। १. यदि मुख्य द्वार के नीचे पानी के निकलने का मार्ग है तो यह वेध निरन्तर धन के अपव्यय का निमित्त होता है। द्वार के सामने यदि निस्तर कीचड़ जमा रहता है तो इससे समाज में शोक पूर्ण घटनाक्रम होते हैं। यदि द्वार के समक्ष वृक्ष आ जाता है तो यह वेध बच्चों एवं संतति के लिए कष्टकारक होता है। यदि द्वार के समक्ष कुआं, नलकूप आदि जलाशय होवें तो यह रोग कारक एवं अशुभ होता हैं। यदि द्वार के ठीक सामने से मार्ग आरंभ होता है तो यह यजमान एवं मन्दिर निर्माता के लिए अति २. 3. ४. ५. अशुभ एवं विनाशकारी हो सकता है। द्वार में छिद्र धनहानि का सूचक है। वेध विचार करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इनका परिहार अवश्य ही करना चाहिये । वास्तु निर्माण के पूर्व ही इनका विचारकर उराके अनुरूप ही निर्माण की योजना बनायें । यहाँ यह विशेष स्मरणीय है कि यदि मुख्य द्वार की ऊंचाई से दुगुनी दूरी छोड़कर कोई वेध है तो वह प्रभावकारी नहीं होता । इसी भांति द्वार एवं वेध के मध्य प्रमुख मार्ग हो जिस पर आवागमन निरन्तर होता हो तो भी वेध का दुष्प्रभाव नहीं रहता है। जिस भांति गृह वास्तु का निर्माण करते समय वेध विचार एवं परिहार किया जाता है उसी भांति प्रासाद के निर्माण के समय भी वेध परिहार करना अत्यंत आवश्यक है। ६.
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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