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(देव शिला)
(३६१) लग्न से संबंधितमंदिर काफलाफल विचार 4. मन्दिर निर्माण आराम के समय यदि कर्क में चन्द्रमा हो, केन्द्र में गुरु हो और अपने मित्र की
राशि या उच्च की राशि में अन्य ग्रह हो तो उरा गटिर में चिर काल तक लक्ष्मी निवास करती है। २. अश्विनी, विशाखा, चित्रा, शतभिषा, आद्रां, पुनर्वसु और घनिष्ठा इन नक्षत्रों में से किसी में शुक्र हो
तथा उसी नक्षत्र में शुक्रवार को मन्दिर निर्माण आरम हो तो वह सम्पन्न ब-|| रहता है। रोहिगी, हस्ता, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, अश्विनी और अनुराधा नक्षत्रों में से किसी में बुध हो और
उसी नक्षत्र में बुधवार को मन्दिर निर्माण आरम्भ हो तो धन एवं पुत्र सुख मिलता है। ४. पुष्य, तीनों उत्तरा, मृगशिरा, श्रवण. आश्लेष, पूर्वाषाढ़ा इन। नक्षत्रों में से किसी पर गुरु हो और उसी
दि. गुरुवार हो तो इरा दिन निर्माण प्रारंभ किया गया मन्दिर पुत्र एवं राज्य सुख देता है।
मन्दिरआराम के समय योग औरउसका फल १. एक भी ग्रह शत्रु के नवांश में होकर सप्तम में या दशम में हो तथा लग्न का स्वामी निर्बल हो और उस
समय मन्दिर आरंभ हो तो मन्दिर अल्प समय में ही विपक्षियों के हाथों में चला जाता है। २. पाप ग्रहों के मध्य में लग्न हो और शुभ ग्रह से युत या दुष्ट न हो तथा आठवें भाव में शनि हो तो
मन्दिर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। मन्दिर आरम्भ के समय यदि दशा का स्वामी और लग्न का स्वामी निर्बल हो तथा सूर्य अनिष्ट में हो तो
मन्दिर शीध्र -1 हो जाता है । ४. गन्दिर आरम्भ के समय लग्न में क्षीण चन्द्रमा हो तथा अष्टम मंगल हो तो मन्दिर की आयु अत्यल्प
रहती है। मूला, रेवती, कृत्तिका, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त और मधा इन सात क्षत्रों पर मंगल हो और मंगल गन्दिर निर्माण आरम्भ के रागय सूर्य और चन्द्र दोनों कृतिका नक्षत्र पर हों तो वह शीध्र ही जल जाता है। लग्न में उच्च का सूर्य अथवा चौथे भाव, उच्च का गुरु और ग्यारहवें भाव में उच्च का शनि हो तो
मन्दिर की आयु १००० वर्ष होती है। 5. ज्येष्ठा, अनुराधा, भरणी, स्वाति, पूर्वाषाढा और धनिष्ठा इन नक्षत्रों में शनि हो तथा मन्दिर निर्माण
आरंभ शनिवार को हो तो पुत्र हानि होती है। ८. मकर, वृश्चिक और कार्य) लग्न में मन्दिर आरंभ करने से नाश होता है। ९. मेष, तुला, धा में कार्यारंभ करने से मन्दिर कार्य दीघे समय में पूर्ण होता है । १०. मध्याह्न और मध्य रात्रि में कार्यारंभ करने से मन्दिर के प्रमुख कार्यकर्ता का धन नाश होता है। ११. दोनों सन्ध्याओं में भी मन्दिर निर्माण आरंभ न करें।