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________________ देव शिल्प लग्न से सम्बन्धित मन्दिर की आयु विचार शुक्र लग्न में, बुध दशम स्थान में, सूर्य ग्यारहवें स्थान में और बृहस्पति केन्द्र (१-४-११-१० स्थान) में होवे, ऐरो लग्न में यदि नवीन वास्तु का खात करें तो उंरा वास्तु की आयु सौ वर्ष होती है। * दसवें और चौथे स्थान में बृहस्पति और चन्द्रमा होने, तथा ग्यारहवें स्थान में शनि और मंगल होवे, ऐसे लग्न में वास्तु का निर्माण आरंभ करें तो उस वास्तु में लक्ष्मी अस्सी (८०) वर्ष स्थिर रहती हैं। बृहस्पति लग्न में (प्रथम स्थान में ), शनि तीसरे, शुक्र चौथे, रवि छटवें और बुध सातवें स्थान में होवे, ऐसे लग्न में आरंभ किये हुए वास्तु में सौ वर्ष तक लक्ष्मी स्थिर रहती है । ** ३६० शुक्र लग्न में, सूर्य तीरारे, मंगल छटवें और गुरु पांचवें स्थान में होवे, ऐसे लग्न में वास्तु का निर्माण आरंभ किया जाये तो दो सौ वर्ष तक यह वास्तु रामृद्धियों से पूर्ण रहता है। $ स्वगृही चंद्रमा लग्न में होवे अर्थात् कर्क राशि का चंदमा लग्न में होवे और बृहस्पति केन्द्र (१४-७-१० स्थान) में बलवान होकर रहा हो, ऐसे लग्न के समय वास्तु का आरंभ करें तो उस वास्तु की निरंतर प्रगति होती है । गृहारंभ के समय लग्न से आठवें स्थान में क्रूर ग्रह होवे तो बहुत अशुभ कारक है और सौम्यग्रह रहा हो तो मध्यम है|# यदि कोई भी एक ग्रह नीच स्थान का, शत्रु स्थान का अथवा शत्रु के नवांशक का होकर शातवें स्थान में अथवा बारहवें स्थान में रहा होवे तथा गृहपति के वर्ण का स्वामी निर्बल होवे, ऐसे समय में प्रारंभ किया हुआ वास्तु दूसरे विपक्षियों के स्वामित्व में चला जाता है । ## लग्न में उच्च का सूर्य अथवा ४ थे भाव, उच्च का गुरु और ११ वें भाव में उच्च का शनि हो तो मन्दिर की आयु १००० वर्ष होती है। मन्दिर निर्माण आरंभ के समय उच राशि के शुभ ग्रह यदि लग्न अथवा केन्द्र में हों तो मन्दिर की आयु २०० वर्ष की होली है। *भिगु लग्गे बहु दसमे दिणयरु लाहे बिहप्फई किंदे । जड़ गिनीभारंभ ता वरिससयाउयं हवइ ।। उ. सा १/२८ ** समच्छत्थे गुरुभसि सगिकुजला हे अलच्छि वरिस असी । इवा विउ छ मुणि कमसों गुरुसणिभिगुरविबुहम्मि सवं ।। व. सा. १/२९ $ सुक्कुद रवितर मंगलि छडे अ पंचमे जीवे । इअ लगकर गेहे दो वरिससयायं रिद्धी । व. स.१/३० #साहित्यो ससि लब्जे शुरू किंचे बलजुओ सुविखिकरो। कुरम-अअहा सोमा मज्झिम झिहारंभे ॥ व. स. १/३० ## इक्केवि आहे पिच्छ परमेहि परेसि सत्त-शरसमे। हिसामिवण्याला अबले परहत्थि होइ सिंहं न. ग. १ / ३२
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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