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________________ (दव शिल्प (३५२ वास्तुशांति विधान जब भी किसी वास्तु का निर्माण अथवा पुनर्निर्माण किया जाता है, उसके भीतर प्रवेश के पूर्व ही। उसकी शांति के निगित्त वारतु शांतेि विधान पूजा करना चाहिये । जैन एवं जैनेतर दोनों में वार तु शांति पूजा का प्रचलन है किन्तु इसके लिए समुचित जा-कारी सामान्य जनों को नहीं होती। कुछ गृहस्थ शांति विधान अथवा अन्य सामान्य पूजा पाठ करके अपने कर्तव्य को इतिश्री समझ लेते हैं। जैनेतर सम्प्रदायों । में अनेकों स्थानों पर पूजा के स्थान पर विभिन्न हिंसा जन्य क्रियाएं तथा बांले का आयोजन करने की पद्धति देखी जाती है। गृह प्रवेश एक अत्यंत मंगलमय शुभ कम है तथा इस अवसर पर किसी भी प्राणी का वध करना तथा उसकी बोल से वास्तु शांति भानना केवल भ्रम है । यह पापमूलक क्रिया है तथा गृह प्रवेश के निमित्त की जाने वाली पशु बलि से कभी भी गृह उपयोगकर्ता सुखो नहीं रह सकता। प्राचीन काल से प्रचलित शास्त्रों के अनुरुप आशाधरजी विरचित वारतु शांति विधान को आधार करके शांति पूजा करना चाहिये। श्री जिनेन्द्र प्रभु की पूजा समाहित वास्तु शांति विधान करके कारतु भूमि पर स्थित वारतु देवों को अर्घ्य देवार गृह प्रवेश करना इष्ट है। वास्तु शांति पूजा जिस भांति गृह निर्मित होने के उपरांत वास्तु शांति पूजा की जाती है, उसी भांति देवालय का निर्माण करने के उपरान्त भी वास्तु शांति पूजा अवश्यमेव करना चाहिये। ऐसा करने से वास्तु निर्माण के समय की गई क्रियाओं में शुद्धता आती है। मन्दिर निर्माण के उपरांत सर्वप्रथम मन्दिर प्रतिष्ठा की जाती है। इस पूजा के उपरांत ही भगवान की प्रतिमा मन्दिर में स्थापित की जाती है। तभी गन्दिर एवं भगवान की प्रतिमा दोनों पूज्यता को प्राप्त होते हैं! प्राची- शास्त्रों में विधान है कि मन्दिर निर्माण के दौरान विभिन्न चरणों में भी वास्तु शांति पूजना करः।। चाहिये। कम से कम सात कार्यों के करते समय वास्तु पूजन अवश्य करना चाहिये *:१ कुर्म रथापना २ द्वार स्थापना ३ पद्मशिला की स्थापना ४ प्रासाद पुरुष की स्थापना ५ कलशारोहण ६ ध्वजारोहण ७ देव प्रतिष्ठा उपरोक्त सात कार्यों के करते समय वास्तु पूजन पुण्याह सप्तक कहलाता है। *कूर्मसंस्थापने द्वारेमभास्यायां चौरुषं। घटे ध्वज प्रतिष्ठाय -मेव पुण्याहसप्तक । प्रा.न. १/३.
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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