________________
(देव शिल्प
(३४७)
जीर्णोद्धारकार्य निर्णय जीर्णोद्धार के लिये मूर्ति अथवा प्रतिमा या देशालय को जब उठाया जाता है तब उसमें अत्यधिक सावधानी रखना आवश्यया है । बिना विधि के मात्र गायावेश में यह कार्य करना सर्व दुःखों का कारण बनता है।
यदि वारतु/देवालय को अच्छी स्थिति में रहने के बाद भी उसे जीर्णोद्धार अथवा नवीनीकरण के नाम पर गिराया अथवा विस्थापित किया जायेगा तो उसके भीषण टुष्परिणाम होंगे। देवालय विस्थापन करने वाला तथा विस्थापन करवाने वाला दोनों ही चिरकाल तक रक का दुःख गोगते हैं।
देव प्रतिमा स्थापित किया हुआ देवालय का विस्थापन कदापि न करें। अचल प्रतिमा को यदि चलित किया जायेगा तो राष्ट्र में विभ्रग या विप्लव होने की संभावना रहेगी । ऐसा विस्थापन करने से अल्पकाल में ही देश का उच्छेद हो जाता है।**
अचल देव प्रतिमा को चलायमान करने से प्रतिमा उत्थानकर्ता का कुल निश्चय ही नष्ट हो जाता है तथा स्त्री एवं पुत्र का मरण भी होता है, ऐसा पूजक छह मारा गें नष्ट हो जाता है ।#
जीर्ण देवालय गिराकर नया बनाने की मर्यादा
मिट्टी का देवालय यदि आकार रहित होकर गिर गया हो तो उसे गिराकर नया बना ले। पाषाण का देवालय यदि तीन हाथ आकार का हो अथवा डेढ़ हाथ का काष्ठ का देवालय हो तो उसे जीर्ण होने की स्थिति में गिराकर नया करा सकते हैं। इसरो अधिक ऊंचा देवालय गिराने का निषेध है ।
जीर्णोद्धार करने का निर्णय लेने से पूर्व सुविज्ञ आचार्य एवं शिल्य शास्त्रज्ञ रो परामर्श करने के उपरांत ही शास्त्रोक्त विधि से कार्यारम कार चाहिये।
प्रतिमा उत्थान एवं संकल्यविधि
जब यह निश्चय कर लिया जाये कि मन्दिर का जीर्णोद्धार किया जाना है तो सर्वप्रथम परम पूज्य आचार्य परमेष्ठी जन एवं विद्वानों से परामर्श कर पूरो योजना बनाना चाहिये । तदनन्तर शुभ मुहूर्त का निर्णय कराना चाहिये। इसके उपरांत एक वर्गाकार चबूतरा बनवाये, जिरा पर ले जाकर मूर्तियों को स्थपित करना है । यह चबूतरा ठोस होना चाहिये। इस पर चंदोबा, त्र आदि लगायें तथा प्रतिमा विराजमान करने के पूर्व इसकी शुद्धि करवा लेवें। यहाँ शान्ति मन्त्र का प्यारह हजार जाप देखें। इसके उपरांत मंदिर के व्यवस्थापकों को पूज्य गुरु आदिकों की उपस्थिति में मन्दिरों में पूजा विधान करना
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
*शि.र./०१३, "शि.र.५/१२०, ##शि..५/-२२,शि.र. ५/१३३.
.र.५/५५४