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________________ (देव शिल्प (३४२) स्तूप स्तूप एक पवित्र स्मारक रचना है। शिद्ध पुरुषों के मोक्ष मिना स्थल पर सामान्यतः इनका निर्माण किया जाता है। रगारक के रूप में एक ची स्थायो होरा रांरचना निर्माण की जाती है । जैन तथा बौद्ध धर्मों के स्तूप निर्माण की प्राचीन परम्परा है। स्तूप शब्द का प्राकृत रुप थप है। इसका अर्थ है हर लंगाना। यह एक पुण्य स्थान है, जिसमें भस्म की प्रतिष्ठापित किया जाता है । स्तूप के स्थान में पवित्रता की भावना तथा अशुद्धि से रक्षा करने की भावना निहित है। भस्म को एक पात्र में रखा जाता है। भरग पात्र का निचला भाग धातु गर्भ कहलाता है। इसके ऊपर ही स्तूप संरचन्ना का निर्माण किया जाता है । जैन परम्परा में स्तूप में अरिहति सिद्ध की प्रतिमाओं रो चित्र विचित्र सुसज्जित किया जाता है। रामवशरण में भवन भांगे की भवन पंक्तियों में स्तूप की रचना होती है। भरत चक्रवर्ती ने भगवान ऋषभदेव के अग्नि संस्कार स्थल पर तीन बड़े स्तूप बनवाये तथा अनेक छोटे स्तूप बनाये साथ ही सिंह निषद्या नामक एक योजन विस्तार का चतुर्मुख जिनालय बनवाया। बौद्ध स्थापत्य में स्तुप उल्टे टोकरे के आकार के बनाये जाते हैं । बौद्ध स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक (२६२-२३२ ई.पू.) के सागर से अधिक किया गया । गुप्तकाल में जैन एवं बौद्ध दोनों स्तूपों का निर्माण किया गया। जैन स्तूप बौद्ध स्तूपों से अधिक प्राचीन मिलते हैं। मथुरा में स्थित जैन स्तूप ईसा पूर्व का था। खंडरों रो ज्ञात होता है कि उसका तल भाग गोलाकार था जिसका व्यारा ४७ फुट था। उसमें केन्द्र से पारेधि की ओर बढ़ते हुए व्यारार्ध वाली दीवाले ईटों से चुनी गई थी, ईटें छोटी बड़ी है, रतुप के बाह्य भाग में जिन प्रतिमाएं थी । ऐसा लगता है कि आसपास तोरण द्वार एवं प्रदक्षिणा पश्च रहा होगा। बौद्ध स्तूप को चैत्य भी कहा जाता है, जिराका अर्थ है चिता की भस्म को चुनकर एक पात्र में रखकर उस पर निर्मित स्मारक । चैत्य शब्द का जैन परम्परा में अर्थ जिन प्रतिमा तथा चैत्यालय का अर्थ जिन मन्दिर माना जाता है। . .-OANTAR ||six THDAY जैन और बौद्ध स्तूप
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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