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(देव शिल्प
३४१ पांडुक शिला
प्रतिष्ठा गण्डा से उत्तर दिशा में पांडुक शिली की रचना की जाती है । सर्वप्रथम चार हाथ (आत कुट) ऊंची आठ हाथ (१६ फुट) व्यास की प्रथम कटनी बनायें। इसके ऊपर ३.१/२ हाथ (७ फुट ऊँची, वार हाथ (आउ फुट) व्यारा की दूसरी कटनी बनाये । इसके ऊपर २.१/२ हाथ (५ फुट) ऊँची १ हाथ (२ फूट) व्यास की तोसरी जाटनी बनायें। तीनों कटनी पूर्ण वृत्ताकार होना चाहिए। अभिषेक जल निकालने के लिए टकी हुई नलिका लगायें । ऊपर चढ़ने के लिए पूर्व से चढ़ती हुई सीढ़ियां बनायें। सुविधा के लिए पश्चिम में भी सीढ़ी बना सकते हैं। पांडुक शिला ऐसे खुले स्थान में बनायें जहां गजराज (ऐरावत हाथी शिला की परिक्रमा कर सके।
पांडक शिला शुगेरुपति के ऊपरी भाग में होती है जिसके ऊपरी अर्धचन्द्राकृति शिला पर नवजात भगवान को इन्द्र ले जाकर अभिषेक करता है। उसी परम्परा का निर्वहन कर पंचकल्याणक ऊसव में पाण्डुका शिला बनाकर उस पर विधिनायक प्रतिमा को रखकर अभिषेक किया जाता है।
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प्रतिष्ठा हेतु पांडुक शिला