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________________ (देव शिल्प) ३४३ खण्डित प्रतिमा प्रकरण खंडित प्रतिमाओं के विषय में सामान्य उपासक के मन में अनेकों भ्रमात्मक जानकारी होती है। प्रतिमा पूजन करते करते समय के साथ घिस जाती है तथा उसके अंगउपांग घिस कर लुप्त हो जाते हैं। लापरवाही अथवा दुर्घटनावश भी प्रतिमा खंडित हो सकती है। ऐसी स्थिति में प्रतिमा की पूज्यता के विषय में संदेह हो जाता है। आगम ग्रन्थों के मतानुसार ही निर्णय लेना श्रेयस्कर है। अपूज्य खंडित प्रतिभा जिस प्रतिमा के नाक, मुख, नेत्र, हृदय, नाभि आदि अंगोपांग खंडित हो गये हो, उनकी पूजा नहीं करना चाहिये । खण्डित, जली हुई, तिड़की हुई, फटी हुई, टूटी हुई प्रतिमा पर मन्त्र संस्कार नहीं रहते। वह पूज्यनीय नहीं रहती है। मरतक आदि से खंडित प्रतिमा सर्वथा अपूज्य रहती है। अतिशय सम्पन्न प्रतिमाओं के संबंध में खंडित प्रतिमा होने पर वे प्रतिमा अपूज्य नहीं मानी जातीय प्रतिमा का स्वरुप ही भंग हो गया हो तो प्रतिभा पूज्य नहीं रहती। यदि सौ से अधिक वर्षों से किसी प्रतिमा की पूजा की जा रही हो तो वह प्रतिमा दोष युक्त रहने पर भी पूज्य होती है। यदि प्रतिमा महापुरुषों के द्वारा स्थापित हो तो उसके विकलांग होने अथवा किंचित खंडित होने पर भी प्रतिमा पूज्य है. उसका पूजन सार्थक होता है। प्रतिमा खंडित हो जाने पर कर्तव्य यदि किसी व्यक्ति के हाथ से प्रतिमा खंडित हो जाये अथवा किसी दुर्घटना से प्रतिमा खंडित हो जाये तो इस विधि का अनुकरण करें सर्वप्रथम शांति मन्त्र अथवा णमोकार मन्त्र की १५० माला फेरकर जाप करें। तदनन्तर पूजन विधान करें। शांति विधान, पंच परमेष्ठी विधान अथवा चौबीस तीर्थंकर विधान में से किसी एक विधान का पूजन कर सकते हैं । जिन तीर्थंकर की प्रतिभा खंडित हुई हो उसी तीर्थंकर की प्रतिभा रखें तथा १००८ कलशों से जल एवं पंचामृत अभिषेक विनय पूर्वक करना चाहिये। विधान समाप्त होने के उपरांत णमोकार मन्त्र पढ़कर ५०८ होम आहुति देवें। इसके उपरांत प्रतिमा (खंडित) को कपड़े में बांधकर विनयपूर्वक अगाध जल में विसर्जित कर देवें ।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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