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________________ (देव शिल्प) पंचकल्याणक प्रतिष्ठा मंडप मन्दिर में स्थापित की जाने वाली प्रतिमाओं के लिये एक विशेष महापूजा का आयोजन किया जाता है जिसे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का नाम दिया जाता है । इसमें यज्ञ क्रिया भी होती है। इन सबके लिये शास्त्रों में पृथक-पृथक निर्देश दिये गये हैं। मन्दिर के आगे अर्थात् पूर्व तथा ईशान अथवा उत्तर दिशा में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा पूजा महोत्सव का मंडप बनाना चाहिये। ३३८ मन्दिर से इस मण्डप की दूरी ३,५,७,९,१५ या १३ हाथ होना चाहिये। इस मण्डप की आकृति वर्गाकार होना चाहिये। आकार का प्रमाण ८, १०, १२ या १६ हाथ के मान का होना चाहिये । यदि विशाल कुण्ड बनाये जायें तो बड़ा मंडप भी बनाया जा सकता है। मंडप १६ स्तंभों का बनाना चाहिये। इसे तोरणों से शोभायुक्त करना चाहिये। मंडप के मध्य में वैदिका बनायें। यज्ञ के लिये ५.८ या ९ कुण्ड बनाना चाहिये । * वर्तमानकाल में पंचकल्याणक महोत्सवों का स्वरूप अत्यंत विशाल हो गया है। इनमें अत्यधिक व्यय भी हो रहा है। पंचकल्याणक पूजा उत्सव पूरी गंभीरता के साथ विधि विधान पूर्वक ही करवाना चाहिये । इसमें किसी भी प्रकार की असावधानी आयोजनकर्ताओं को असीम संकट में डाल सकती है। पंचकल्याणक पूजा में यज्ञकुण्ड ** दिशाओं के अनुरूप यज्ञकुण्डों का आकार पृथक-पृथक रखा जाता है पूर्व वर्गाकार आग्नेय योन्याकार दक्षिण अर्धचन्द्राकार नैऋत्य पश्चिम त्रिकोण गोल षट्कोण अष्टदल पद्माकार अष्टकोण वायव्य उत्तर ईशान ये कुण्ड अष्ट दिशाओं के दिक्पालों के लिये निर्मित किये जाते हैं। पूर्व एवं ईशान दिशा के मध्य भाग में (पूर्वी ईशान में) आचार्य कुण्ड बनायें। इसका आकार गोल या वर्गाकार रखें। ये कुण्ड अष्ट दिशाओं के दिक्पालों के लिये निर्मित किये जाते हैं। पूर्व एवं ईशान दिशा के मध्य भाग में (पूर्वी ईशान में) आचार्य कुण्ड बनायें। इसका आकार गोल या वर्गाकार रखें। * प्रा.नं. ८/४१,४२,४३. ** मंडप कुंड सिद्धि / ३२ (प्रा.म. ८)
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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