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देव शिल्प
पूजा करने की दिशा
उपासक को पूजन करते समय अपने मुख की दिशा का ध्यान रखना आवश्यक है । जैनाचार्यो ने पूजा प्रकरणों में इसका उल्लेख किया है। आचार्य उमास्वामी कृत श्रावकाचार में इसका स्पष्ट निर्देश है
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पूजा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके ही करना चाहिए। यदि प्रतिमा उत्तर मुखी हो तो पूजक को पूर्व की ओर मुख करके पूजा करना चाहिए। यदि प्रतिमा पूर्व भुखी हो पूजक को उत्तर मुख होकर पूजा करना चाहिए। * अन्य दिशाओं की तरफ मुख करके पूजा करने का फल नहीं मिलता न हो पूजा में पूजक का मन लगता है।
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पूजन करते समय बैठने का आसन
पूजन करते समय पद्मास से बैठकर, पर्यकासन या सुखासन से बैठकर पूज-1 करना चाहिए। भगवान जिनेन्द्र देव की पूजन करते समय अपना मुख पूर्व प्रत में ही रखें # पूजा करते समय नासाग्रदृष्टि रखें, मौनपूर्वक मुख ढक कर पूजा करना चाहिए। &
विभिन्न दिशाओं में मुख करके पूजन का फल $ पूजा करने की दिशा का नाम
पश्चिम
दक्षिण
आग्नेय
वायव्य
नैऋत्य
ईशान
उत्तर
पूर्व
३३१
फल संतति का अभाव
संतति का नाश
निरंतर धनहानि
संतति का अभाव
कुलक्षय
सौभाग्य नाश
धन वृद्धि रार्वलाभ, श्रेष्ठ, शांति
* स्नानं पूर्वमुखीभूय प्रतीच्यां दन्तधावनम्। उदीच्यां श्वेतवस्त्राणि पूजा पूर्वोत्तरमुखी ॥ उ. श्री. ९७ ॥ ॥
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* उदमुख स्वयं तिष्ठेत प्रांग्मुखं स्थापयेज्जिनम्। ७. श्री. पू. ४५६.
#पद्मासन समानः पल्यंकरथोऽथवा स्थितः । नूर्वोत्तर मुखं कृत्वा पूजां कुर्याज्जिनेशिनाम् ।। उ. श्री. पृ. ४७ &पद्मासन समासीनो नासः श्रन्यस्तलोचनः । मौनो वस्त्रावृतास्तोयं पूजां कुर्याजिनेशिनः ॥ उ. श्री. / १२४ $ तथाचकः पूर्वदेश चोत्तरस्यां न सम्मुखः । दक्षिणस्यां दिशायां च विदिशायां च वर्जयेत् ॥ ३. श्रा. ५५६ पश्चिमाभिमुखः कुर्यात् पूजां चेच्छ्री जिनेशिनाम्। तदास्यात्संततिच्छे दो दक्षिणस्यामसंततिः ।। उ. श्रा. ११७ आग्नेयां च कृता पूजा धनहानिर्दिनेदिने । वायव्यां संततिर्नवनैा तु कुलक्षयः ।। उ. श्री. २१८ ईशान्या नैद कर्तव्या पूजा सौभाग्यहारिणी ॥ उ. श्रा. १०९