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________________ २. ३. ४. ५. ६. ७. दिव शिल्प ८. सम अंगुलों के आकार की प्रतिमा के पूजन का फल प्रतिमा का आकार अंगुल में फल दो चार गृह चैत्यालय की शुचिता के लिए निर्देश ५. इसके भीतर बगैर स्नान किए तथा अशुद्ध वस्त्र पहने नहीं जाये । मासिक धर्म वाली महिलाएं एवं युवतियां किसी भी स्थिति में इसमें प्रवेश न करें। न ही इसके दरवाजे पर खड़े या बैठे रहें । मासिक धर्म वाली स्थिति में नारियों अपनी छाया किसी भी भगवान के मन्दिर, प्रतिमा अथवा चित्र पर नहीं पड़ने देवें । गृह चैत्यालय अथवा लघु देव स्थान ऐसे स्थान पर न बनाये, जिसके ठीक लगकर शौचालय, मूत्रालय, कचराधर अथवा जूते-चप्पल रखने का स्थान हो । जहाँ पर देव स्थान अथवा चैत्यालय हो उसके ऊपर कोई वजन न रखें। चैत्यालय सीढ़ी के नीचे कदापि न बनायें । ऐसे स्थान, जहाँ से बहुत से लोगों का आना-जाना होता है, वहाँ यदि शुचिता संभव न हो तो चैत्यालय नहीं बनाये । छह आठ दरा बारह ३३० गृह चैत्यालय में शुचिता प्रकरण निवास स्थान में पूजा पाठ के लिए मन्दिर की आवश्यकता होती है। मन्दिर का स्थान गृह के ईशान भाग में बनाना चाहिये। ईशान के आंतरिक्त पूर्व अथवा उत्तर में भी गृह चैत्यालय बनाये जा सकते हैं। गृह में चैत्यालय बनाने के साथ ही उसकी पवित्रता शुचिता का ध्यान रखना परम आवश्यक है। ऐसा न करने पर भीषण विपरीत परिणामों का आगमन संभावित होता है। धननाशकारक पीड़ादायक रोगोत्पत्ति उद्वेग हानि, बुद्धि क्षीण धन नाश अशुभ चैत्यालय जिस काष्ट से बनाया गया है वह पुरानी उपयोग की हुई लकड़ी न हो। केवल अच्छी लकड़ी का ही बनायें । ९. सेप्टिक टैंक के ऊपर गृह चैत्यालय नहीं बनायें ! १०. चैत्यालय में स्थित प्रतिमाओं का अभिषेक जल (गन्धोदक) तथा पूजा में चढ़ाये गये द्रव्य (निर्माल्य) का उल्लघन न करें तथा इसे ऐसे स्थान पर रखावें जहां पर इसका अविनय न हो । ११. प्रतिमाओं की स्वच्छता रखना गृहस्थ का कर्तव्य है अतएव चैत्यालय में इस प्रकार व्यवस्था रखें कि धूल, गंदगी, प्रदूषण वहाँ प्रवेश न करें। १२. यह सावधानी रखें कि किसी भी स्थिति में चैत्यालय में मकड़ी के जाले न लगे ।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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