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(देव शिल्प
गृह चैत्यालय में प्रतिमा स्थापन के लिए निर्देश १- जिस तीर्थंकर की मूर्ति गृह मन्दिर में रखना इष्ट है, उनकी तथा गृह स्वामी की राशि गुण का
मिलान करके ही मूर्ति रखें। जिस तीर्थंकर की राशि गृह स्वामी की राशि के अनुकूल हो उसे
ही रखें। २- गृह मन्दिर में पाषाण, लेप, चित्र जो लौह रंग से बने हों, हाथी दांत तथा काष्ठ की प्रतिमा कदापि
| रखें। केवल धातु या रत्न प्रतिमा गृह मन्दिर में रख सकते हैं। ३- गृह मन्दिर में केवल पद्मासन प्रतिमा ही रखना चाहिये। ४- घर में बिना परिकर वाली प्रतिमा अर्थात् सिद्ध प्रतिमा नहीं रखना चाहिये।
गृह चैत्यालय इस प्रकार स्थापित कर-|| चाहिये कि भगवान की पोट मुख्य वास्तु या घर की
तरफ न आये । अन्यथा गृह स्वामी को तन, मन, धन एवं जन की हानि की संभावना रहती है। ६- गृह चैत्यालय इस प्रकार स्थापित करें कि वह घर के उत्तरी, पूर्वी अथवा ईशान भाग में आये।
अन्य दिशाओं में स्थापना करना अशुभ फलदायक होता है। गृह चैत्यालय में स्थापित प्रतिभा का बायां भाग की तरफ घर / वास्तु का होना अशुभ है।
गृहचैत्यालय में रखने योग्य प्रतिमा का आकार
गृह चैत्यालय में कोई भी प्रतिमा का आकार एक से ग्यारह अंगुल के मध्य होना चाहिये। यह भी सिर्फ विषम अंगुलों में होना अति आवश्यक है।
सम अंगुलों की प्रतिमा विपरीत फल देती है।* &
विषम अंगुलों के आकार की प्रतिमा के पूजन का फल प्रतिमा का आकार अंगुल में फल
तीन पांच सात
धन धान्य वृद्धि उत्तम बुद्धि ज्ञान वृद्धि गोधन वृद्धि, धन धान्य, परिवार की उन्नति
ग्यारह
सर्वमनोरथ पूरक
*एकांगुला भर्वत श्रेष्ठा द्वयंगुला धननाशिका। त्र्यंगुला वृद्धिदा ज्ञेया वर्जयेत् चतुरंगुलाम् ।। शि.२. १२/१४९ पगगुला भवेद् वृद्धिरुद्धगंच घडंगुला। सप्तांगुला नवा वृद्धिींना चाष्टांगुला सदा ॥ शि.र. ०२/५० नवांगुला सुतं दद्याद द्रव्यहानिर्दशांगुला। एकादशागुलं बिम्बं सद्यः कामार्थ सिद्धिदम् । शि.र. ५२/१५१
&उ.श्रा १०१ से २०३