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(देव शिल्प)
गर्भगृह से छज्जा की चौड़ाई सवा गुनी करें। अथवा एक तिहाई या आधा भाग भी बढ़ा सकते हैं। दीवार व छज्जा युक्त मंदिर शुभ आय में बनायें । कोना, प्रतिरथ, भद्र आदि अगवाला तथा तिलक तवंगादि भूषणवाला शिखर बल्ल काल मन्दिर घर में न रखें। ऐसा काष्ठ मन्दिर घर में रखना उचित नहीं हैं किन्तु यदि तीर्थया घ में रखें तो कोई दोष नहीं है। तीर्थमार्ग में जिन दर्शन हेतु काष्ठ मन्दिर ले जाया जा सकता है। यात्रा से आने के बाद उसे घर मन्दिर में न रखें बल्कि रथशाला या जिनमंदिर में रखें। ** गृह मन्दिर में मल्लिनाथ, नेमिनाथ एवं महावीर स्वामी की प्रतिमा अतिवैराग्यकर होने के कारण नहीं रखना चाहिये। शेष २१ तीर्थंकरों की प्रतिमा ही रखें। #
सावधानी :- गृह मंदिर में शिखर पर ध्वजादण्ड नहीं रखना चाहिये। सिर्फ आमलसार कलश ही रखना चाहिये। ###
विभिन्न दिशाओं में गृह चैत्यालय बनाने का फल
दिशा
पूर्व
आग्नेय
दक्षिण
नैऋत्य
पश्चिम
वायव्य
३२८
फल
शुभ, ऐश्वर्य लाभ, प्रतिष्ठा, यश की प्राप्ति.
अशुभ, पूजा आराधना निष्फल अशुभ, शत्रुवृद्धि
भूत पिशाच बाधा में वृद्धि, अशुभ अशुभ, ऐश्वर्य हानि, धननाश अशुभ, रोगोत्पत्ति
शुभ धन लाभ ऐश्वर्य प्राप्ति
शुभ सुख समाधान शांति सर्वकार्य सिद्धि
गृह मन्दिर बनाते समय यह आवश्यक है कि लम्बाई चौड़ाई बराबर हो तथा ध्वज आय एवं देवगण ही आये। ऐसा नक्षत्र आये जिसका देवगण हो। उदाहरण के ४१ अंगुल लं. चौ. बनाने पर ये दोनों आयेंगे।
उत्तर
ईशान
** कर्ण प्रतिरथ भद्रोरुश्रृंगतिलकान्वितः ।
काष्ठाप्रासादः शिखरी प्रोको तीर्थ शुभावहः ॥ उ. श्री. २०९
# नेमिश्च मल्लिनाथश्च वीरो वैराग्यकारकः
यो वै मंदिरे स्थाप्याः शुभदा न गृहे मताः । शि.र.१२/१०५
#मल्ली नेमी वीरो गिहभवणे सादए ण पूइज्जइ
इगवी तित्थयरा संतगरा पूइया वन्दे । प्रतिष्ठा कल्प, उपाध्याय सकलचन्द्र ##व.सा.३/६८