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(देव शिल्प)
नाम
वर्ण
केश
नेत्र
दांत
आसन
रुघ
भुजा
दाहिने हाथ में -
बायें हाथ में -
क्षेत्रपाल देव का स्वरूप
निर्वाण कलिका के अनुरूप
अपने क्षेत्र के अनुरुप नाग
श्याग
बर्बर
पीले
विरुप एवं बड़े
पादुका पर
नग्न
छह
गुदार, पाश, डमरु
कुत्ता, अंकुश, लाडी
स्थापना का स्थान
जिन भगवान के दाहिनी ओर ईशान को लगकर दक्षिणाभिमुखी करें।
क्षेत्रपाल के पांच नाम
क्षेत्रपाल इन पांच नामों से जाने जाते हैं:
:
१. विजयभद्र २. मणिभद्र ३. वीरभद्र ४. भैरव ५. अपराजित
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क्षेत्रपाल जी
यहां यह स्मरण रखना अत्यंत आवश्यक है कि क्षेत्रपाल आदि देवों की पूजा अर्चना जिनेश्वर प्रभु के समान नहीं की जाती है। त्रिलोकपति जिनेश्वर प्रभु की आराधना सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की उत्पत्ति का कारण है तथा परम्परा से गोक्ष का हेतु है । क्षेत्रपाल आदि देवताओं की विनय तात्कालिक तथा सामान्य उपचार विनय के रूप में की जाती हैं। तीर्थकर प्रभु की पूजा एवं क्षेत्रपाल देव की विनय में किंचित् भी समानता नहीं है। अतएव उपासक का कर्त्तव्य है कि दोनों को एक समझने की भूल न करें।