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________________ (देव शिल्प ८) दृष्टं जिनेन्द्र भवनं वर देवदारु कपर चन्दन तरुष्क सुगन्धि धूपैः । मेघावमान गगने पवनाभिघात चंचल चलद विमल केतन तुंग शालम् ||७|| आज मैंने ऐसे जिन भवन के दर्शन किये जो पवन की लहरों से हिलती हुई पताकाओं से शोभायमान हैं तथा जहाँ पर उत्तम शाल, देवदारु, कपूर, चन्दन और तुरुष्क आदि सुगन्धित द्रव्यों से निर्मित धूप खेने से सुगन्धित धूम्र के बादल उत्तम मेघों की भांति छाये हुए हैं। दृष्टं जिनेन्द्र भवन धवलातपत्रच्छाया जिमउन तनु यक्षकुमार वृन्दैः । दोद्यपान सित चामर पंवित भास भामण्डल युति युत प्रतिमाभिराम् ।।८।। आज मैंने ऐसे जिन भवन के दर्शन किये जो शुभ्र आत पत्र की छाया में यक्ष कुमारों के द्वारा दुरते हुए चामरों की पंक्ति की शोभा से समन्वित हैं। जिन प्रतिमाओं के पीछे लगे भामण्डल की चमक से नयनाभिराम दृश्य लग रहा है। दृष्टं जिनेन्द्र भवनं विविध प्रकार पुष्पोपहार रमणीय सुरत्न भूमि। नित्यं वसन्ततिलक श्रियमादधानं सन मंगलं सकलचन्द्र मुजीन्द्र वन्यम् ।।९।। आज मैंने सकलचन्द्र गुनिराज के द्वारा सदा वन्दनीय जिनेन्द्र भवन को दर्शन किये जो कि सर्वोत्तम मंगलरुप है तथा निरन्तर वसन्त ऋतु में तिलक वृक्ष के समान शोभायमान है । जहाँ की रत्नभय भूमि विविध पुष्य उपहारों से रमणीय लग रही है। ऐसी भूमि की उपासना सकल चन्द्रगा के समान सदा सुखकर मुनिराज भी करते हैं। दृष्टं पयाय मणिकांचन चित्र तुंगा। सिंहासनादि जिनबिम्ब विभूतियुक्तम् । चैत्यालयं यदतुलं परिकीर्तितं में सन् मंगलं सकलचन्द्र मुजीन्द्र वन्यम् ।।१०।। आज मैंने ऐसे जिन चैत्यालय के दर्शन किये जिसमें मणि कांचन से सहित विचित्र शोभा को धारण करने वाले सिंहासन आदि विभूति से युक्त जिनेन्द्र प्रतिमा विराजमान है। जिसका कीर्तिगान सर्वत्र गाया जाता है, जो मेरे लिए मंगल स्वरुप है तथा पूर्ण चन्द्रमा की भांति सबको सुखकर है ऐसे चैत्यालय के दर्शन सकलचन्द्र मुनि (मैंने) ने किये हैं।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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