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(देव शिल्प)
टष्टं जिनेन्द्र भवनं भवनादि वास विख्यात नाक गणिका गण गीयमानम् । नानामणि प्रचव भासुर रश्मिजाल ।
व्यालीढ निर्मल विशाल गवाक्ष जालम् ||३१| आज मैंने ऐसे जिन भवन के दर्शन किये जहाँ वासी देवों की गणिक गीत गा रही हैं। यह जिन भवन विशाल झरोखों से युक्त हैं तथा विभिन्न प्रकार की चमकदार मणियों की झिलमिलाहट झरोखों की शोभा बढ़ा रही है।
दृष्टं जिनेन्द्र भवनं सुर सिद्ध यक्ष गन्धर्व किन्नर करार्पित वेणु वीणा ।
संगीत मिश्रित नमस्कृत धीर नादै ।
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रापूरिताम्बरतलोरु दिगन्तरालम् ||४||
जिन भवन में आकाश एवं दिशाओं के देव, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर आदि जब जिनेन्द्र प्रभु को नमस्कार करते हैं तब उनके हाथों से वेणु निर्मित वीणा से जो संगीत ध्वनि निकलती है वह सारे जिनालय में भर जाती है। ऐसी मंगल ध्वनि से युक्त जिनालय के आज मैंने दर्शन किये।
दृष्टं जिनेन्द्र भवनं मणिरत्न हेप सारोज्ज्वलैः कलश चामर दर्पणाद्यैः ।
दृष्टं जिनेन्द्र भवनं विलसद् विलोल
माला कुलालि ललितालक विभ्रमाणम् ।। माधुर्य वायलय नृत्य विलासिनीनां
लीला चलद् वलय नूपुर नाद स्म्यम् || ५ ||
आज मैंने ऐसे जिन भवन के दर्शन किये जो कि सुन्दर मालाओं से युक्त हैं, जिन मालाओं पर भ्रमर मंडरा रहे है तथा ये मालाएं अति सुन्दर अलकों की शोभा धारण कर रही हैं। यह जिन भवन मधुर शब्द युक्त वाद्य, लय के साथ नृत्य करते हुए नृत्यांगनाओं के हिलते हुए वलय तथा घुंघरुओं के नाद से रमणीय प्रतीत हो रहा है।
सन्मंगलैः सततमष्ट शतप्रभैदे,
विभाजितं विमल मौक्तिक दामशोभम् ||६|
आज मैंने ऐसे जिन भवन के दर्शन किये जो मणिमथ, रत्न एवं स्वर्ण निर्मित एक सौ आठ कलशों से शोभान्वित हैं तथा निर्मल मोतियों की मालाएं उसकी शोभा में वृद्धि कर रही हैं।