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________________ (देव शिल्प (२६९) भामण्डल जिन प्रतिमा के मस्तक के पीछे प्रभामण्डल की उपस्थिति दर्शाने हेतु भामण्डल की स्थापना की जाती है। भामण्डल की आकृति गोल ही रखना चाहिये । इसका आकार इस प्रकार रखें :प्रमाण - मस्तक के प्रमाण से दुगुना होना चाहिए। मोटाई - पूरे सिंहासन के ८४ भाग करने पर उसके आठ भाग के तुल्य करें। चौड़ाई - पूरे सिंहासन के ८४ भाग करने पर उसके बाइस भाग के तुल्य करें। सभी प्रातिहार्य प्रतिमा के साथ ही बनाये जाते हैं। यदि प्रतिमा के पीछे पृथक से मूल्यवान धातु का रत्नजटित भामण्डल स्थापित करना हो तो भामण्डल का आकार पूर्ववत् ही रखें, मोटाई का प्रमाण कम किया जा सकता है ।** घण्टा अर्पण अष्ट मंगल द्रव्यों को जिन मन्दिर में लगाना अत्यन्त आवश्यक है। घण्टा भी मंगल द्रव्य है। मन्दिर में मंगलध्यान के लिय घण्टा एवं झालर लगाये जाते हैं। घण्टा एवं झालर का वादन एक विशिष्ट ध्वनि का उत्पादन करते हैं। इसकी ध्वनि जिनदर्शन को प्रेरित करती है। मन को प्रसन्न कर उपासक को पापों से दूर करती है। अन्य अमंगलकारी ध्वनियों का परिहार करती है। जिन भन्दिर में घण्टे का उपयोग पूजा एवं अभिषेक के समय वादन के लिये किया जाता है। उपासक दर्शन करते समय भी इसका वादन करते हैं। शिखर से परावर्तित होकर आई हुई घण्टा ध्वनि की गूंज सारे वातावरण को आल्हादित एवं धर्ममय बनाती है। घण्टा अर्पण से व्यापक पुण्य फल की प्राप्ति के लिए आचार्यों ने निर्देश किया है। घण्टा एवं झालर लोहे का न बनायें , पीतल का ही बनायें। झालर कांसे की भी बनाई जा सकती है। वरांग चरित्र में घण्टा दान करने से सुस्वर की प्राप्ति का उल्लेख मिलता है। घण्टा लगाते समय ध्यान रखें कि इससे भगवान की दृष्टि अवरुद्ध न हो। साथ ही दर्शनार्थी को सिर में न टकराए। ___ घण्टा मुख्य प्रवेशद्वार के पास ही लगायें, ताकि दर्शनार्थी प्रवेश करते ही इसका वादन करो मन्दिर में जो उपासक घण्टा लगवाते हैं वे सुर गति को प्राप्त कर आनन्द भोगते हैं। ऐसे श्रावक को स्वर दोष नहीं होता, सुस्वर की प्राप्ति होती है।* - - - - - - - - - - - - - - - - - - "घंटाहि यंटमपाउलेसु पदरच्छराणमज्झम्मि । संकीउई सुरसंयाय सेविओं विभाणेस ।। वसुजन्दि श्रावकाचार ४८९ ।। घण्टा तोरण दाम घ्पपटकैः राजन्ति सन्मंठाले: स्तोत्रश्चित्तहरैर्महोत्सव शतैर्वादित्र संगीतकैः पूजारम्भ महाभिषेक यजनैः पुण्योत्करैः सक्रिर्यैः श्री चैत्यायतनाजि तानि कृतिनां कुर्वन्तु मंगलम् ।९।। नवदेवतास्तोत्र * छत्तत्तयवित्थारं वीसंगल जिवगमेण दह-भायं । भामंडलवित्थारं बावीसं अट्ठ पइसारं ।।व.सा. २/३५
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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