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(देव शिल्प
(२६८)
अन्यत्र इनका नामोल्लेख इस प्रकार भी है -
१. अशोक वृक्ष २. तीन छत्र ३. रत्न खचित सिंहासन ४. भक्तगणों से वेष्टित रहना ५.दुन्दुभि ६. पुष्पवृष्टि ७. प्रभामण्डल ८. चौंसठ चमर
ये सभी प्रतिहार्य तीर्थकर प्रभु की धर्मसभा में रहते हैं । मन्दिर मूलतः तीर्थकर की धर्मसभा का प्रतीक होता है अतः गर्भगृह में भी सिंहासन के साथ ही ये प्रातिहार्य निर्मित किये जाते हैं ।
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६- सुर पुष्प वृष्टि
५-दिव्य ध्वनि
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७-चंवर
८- देवदुन्दुभि
*(ति.प./४/९१५-९२७) (ज.प./१३/१२२-१३०)