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________________ (देव शिल्प अष्ट मंगलद्रव्य तीर्थकर प्रभु के बिम्ब के समीप अष्ट मंगल द्रव्यों को विराजमान किया जाता है। समवशरण में ये प्रत्येक १०८ की संख्या में होते हैं। वेदी पर मूलनायक प्रतिमा के समक्ष इनको स्थापित किया जाता है | तीर्थंकर प्रभु के समीपस्थ होने के कारण इन अष्टद्रव्यों को मंगल द्रव्य कहा जाता है। इनके नाम इस प्रकार है *: १. २. कलश ४. ५. ध्वजा ७. छत्र C. सुप्रतिष्ठ इनके अतिरिक्त घण्टा शंख, धूपघट, दीप, कूर्च, पाटलिका, झांझ, मंजीरा आदि भी मंगल स्वरुप प्रतिमा के उपकरण की भाँति रखे जाते है । झारी चंवर १- मंगल कलश ३- दर्पण * ते सव्वे उववरणा यहुदीओ तह, व दिव्वाणिं । मंगल दव्राणि पुढं जिणिंद पासेसु रेहति ।। ति.प. ४/१८७९ भिंगार कलस दप्पण चामर धय वियण छस सुपाडा । 3. ६. दर्पण व्यजन 10000008000) २७० अठुत्तर सवसंखा पत्तेक मंगला तेसुं ॥ ति.प. ४/१८८० अतिरिक्त संदर्भ, ज.प./१३/०१२, त्रि. सा. / ९८९, ८.पा./टी. ३५/२९/५.ह.पु./५/३६,४-३६५ २- भृंगार (झारी) ४- व्यजन (पंखा )
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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