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(देव शिल्प
(२६४ ऊंचाई में डउला (मूर्ति के ऊपर का परिकर)का विभाजन छत्र क्य
१२ भाग इसके ऊपर शंख धारक
८ भाग इराके ऊपर वंशपत्र एवं लता ६भाग
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२६ मा ये छब्बीस भाग २४ भाग के ऊपर बनायें । कुल ५० भाग डउला की ऊंचाई प्रतिमा के मस्तक के ऊपर छत्र त्रय की चौड़ाई
२०भाग बाहर निकलता हुआ भाग
१० भाग
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३० भाग भामंडल की मोटाई
८ भाग भामंडल की चौड़ाई
२२ भाग दोनों तरफ माला धारक इन्द्र १६-१६ भाग उनके ऊपर एक एक हाथी १८-१८. भाग उनके ऊपर हाथी पर बैठे हिरण गमेषी देव उनके सामने दुंदुभिवादक तथा मध्य में छत्र के ऊपर शंखवादक बनायें। धनत्रय समेत डउला की मोटाईछत्रत्रय समेत डउला की मोटाई-प्रतिमा से आधी करें । पार्श्व में चंवर धारक अथवा कायोत्सर्गस्थ ध्यानस्थ प्रतिमा की दृष्टि मूलनायक प्रतिमा के स्तनसूत्र के बराबर रखें।
जिन प्रतिमा के परिकर के स्वरूप में अंतरण
जहां दो चंवरधारक हैं वहां दो कायोत्सर्गध्यानस्थ प्रतिमा बनायें। डउला में जहां वंश एवं वीणा धारक हैं वहां पद्मासनस्थ दो प्रतिमा बनायें। इस प्रकार उपरोक्त दो एवं एक - एक मूलनायक इस प्रकार पंच तीर्थ प्रतिमा बन जायेगी। यदि परिकर में पंचतीर्थ प्रतिमा बनाना हो तो चंबरधारक, वंशीधारक, वीणाधारक के स्थान पर उसी प्रमाण से ध्यानस्थ प्रतिमा बनायें तो यह भी पंचतीर्थ प्रतिमा बन जायेगी।