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(देव शिल्प)
सिंहासन का स्वरूप
जिनेन्द्र प्रभु की प्रतिमा सिंहासन में ही विराजमान करना चाहिये। सिंहासन में मध्यभाग में धर्मचक्र बनायें तथा बायें एवं दाहिने भाग में क्रमशः यक्षिणी एवं यक्ष की स्थापना करें। सिंहासन को गज एवं सिंह की आकृतियों से सुसज्जित करें।
सिंहासन का विस्तृत विवरण
सिंहासन के दोनों ओर यक्ष यक्षिणी, दो सिंह, दो हाथी, दो चंवर धारी देव, मध्य में चक्रेश्वरी देवी बनायें। सिंहासन के मध्य की चक्रेश्वरी देवी गरुड़ वाहन पर आसीन हो तथा चतुर्भुजी स्वरुप वाली हों। उसकी ऊपर की दोनों भुजाओं में चक्र की स्थापना करें। नीचे की दाहिनी भुजा में वरदान हस्त हो। नीचे की बायीं भुजा में बिजौरे का कल हो। चक्रेश्वरी देवी के नीचे एक धर्मचक्र बनायें। धर्मचक्र के दोनों तरफ हिरण बनायें। गादी (पीठ) के मध्य में तीर्थंकर प्रभु का चिन्ह बनायें। **
सिंहासन का प्रमाण निम्न अनुपात में रखें
लम्बाई में मूर्ति से डेढ़ा चौड़ाई में मूर्ति से आधा मोटाई में मूर्ति से चौथाई
सिंहासन की लम्बाई के ४ भाग करें।
प्रत्येक यक्ष-यक्षिणी
दो सिंह
दो हाथी
दो चंवर धारी
चक्रेश्वरी देवी
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परिकर का प्रमाण
१४- १४ भाग
१२- १२ भाग
१०-१० भाग
३- ३ भाग
६ भाग
कुल - ८४ भाग
२६२
* सिंहासनं च जैनानां गज सिंह विभूषितम् ।
मध्ये च धर्मचक्रं च तत्पार्श्वे यक्ष दक्षिणी । शि. २. ४ / १५६
** चक्कधरी गरुडंका तस्सांहे धम्मचक्क उभयदिसं । हरिणजुअं रमणीयं गडियमज्झम्मि जिणचिण्हं ॥ व. सा. २ / २८