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________________ (देव शिल्प प्रशस्ति लेख प्रतिभा के नीचे पीठ पर प्रशस्ति लेख उत्कीर्ण किया जाता है। यह इस बात को दर्शाता है कि प्रतिमा की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कब तथा किनके द्वारा की गई। समय-समय पर इस लेख की शैली में किंचित् परिर्वतन भी हुए हैं। यह लेख पुरातत्व संरक्षण तथा संस्कृति संरक्षण दोनों दृष्टियों से अत्यंत उपयोगी हैं। सामान्य रीति के लेख का प्रारूप इस प्रकार है - स्वस्ति श्री वीर निर्वाण संवत्सरे २५. ...तमे........ विक्रमाब्दे २०............ तमे.. .. मासे......तमे...पक्षे. तिथौ वासरे.. मूलसंघे श्री दिगम्बर जैन कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये.. . जिन बिम्ब प्रतिष्टोत्सवे... सान्निध्ये प्रतिष्ठाचार्यत्वे.. सर्वलोकस्य कल्याणाय भवतु । . स्थाने . दिगम्बर जैनाचार्य श्री १०८ .. २६१ इत्येतैः प्रतिष्ठापितमिदं जिन बिम्ब पतिष्ठित प्रतिमा की स्थापना मन्दिर निर्माण के उपरांत उसमें प्रतिमा की स्थापना की जाती है। प्रतिमा को पंचकल्याण प्रतिष्ठा विधान से प्रतिष्ठित किया जाता है। उसके उपरांत उत्साहपूर्वक शुभ मुहूर्त में मंत्रोच्चार पूर्वक प्रतिमा को पीठिका पर विराजमान किया जाता है। प्रतिमा के आकार का अवलोकन करके पहले से ही यह निर्णय कर लेना आवश्यक है कि प्रतिमा की प्रतिष्ठा पंचकल्याण मण्डप में की जाये अथवा मन्दिर में ही की जाये। यदि प्रतिभा का आकार इतना बड़ा हो कि उसे मुख्य द्वार से लिटाकर अथवा टेढ़ी करके भीतर लाना पड़े तो ऐसी स्थिति उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रतिमा पहले से ही वेदी पर स्थापित कर उसके पश्चात प्रतिष्ठा करानी चाहिये । यदि मन्दिर का प्रमाण शास्त्रोक्त है तथा द्वार का प्रमाण भी अनुरुप है तो प्रतिमा आसानी से आ जायेगी। किन्तु पूर्व निर्मित मन्दिर में बड़ी प्रतिमा स्थापित करते समय उपरोक्त निर्देश का अनुकरण आवश्यक है । जिरा समय प्रतिमा वेदी पर स्थापित की जाती है उस समय स्थापित की जाने वाली प्रतिमा का मुख नगर की ओर रखना चाहिये तथा पीठ वेदी की ओर रखना चाहिये। इसके विपरीत करने पर महान अनिष्ट होने की आशंका रहती है।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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