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(देव शिल्प
२५१ रुप खाल) करें । पास के ऊपर की बर्लिका (गोट) १/४ भाग करें।
कर्ण भागकामाय १. १/२ भाग कर्ण छिद्र मध्य में यवनालका के समान करें। २. ४, १/२ भाग नेन और कर्ण का अंतराल करें। ३. दोनों कानों का अंतराल १८ भाग पीछे तथा १४ भाग सामने हो। ४. इस प्रकार कानों के समीप मस्तक की परिधि ३२ भाग तथा ऊपर के मस्तक की परिधि १२ भाग होना चाहिये।
बाहु भाग का माप १. हाथ की कोहनी का विस्तार १६/३ भाग तथा परिधि १६ भाग रखें। २. कोहलीचा लक चूड़ा उता से बाह करें। ३. भुजा का मध्य भाग १३/३ भाग तथा परिधि में १४ भाग करें। ४. पौंचे का विस्तार ४ भाग तथा परिधि १२ भाग करें। ५. पौंचे से मध्यम अंगुली तक १२ भाग करें। ६. मध्यम अंगुली ५ भाग करें। ७. मरयम अंगुली से १/२ - १/२ पर्व कम तर्जनी तथा अनामिका अंगुली करें। ८. अनागेिका रो १ पर्व कम कनिष्ठिका अंगुली करें। ९. पौंचे से कनिष्ठिका तक ५ भाग अंतराल करें। ५०. तर्जनी और मध्यमा के प्रमाण से कनिष्ठिका की मोटाई १/२ भाग कम करें। अंगुष्ठ में २ पर्व करें।
शेष अंगुलियों में ३-३ पर्व करें। ११. अंगुष्ठ की परिधि ४ भाग रखें। १२, १/२ पर्व के बराबर पांचों अंगुलियों में नन करें। १३. हथेली ७ भाग लम्बी ५ भाग चौड़ो करें। १४. हथेली की मध्य परिधि १२ भाग करें। १५. अंगुष्ट मूल तथा तर्जनो के मूल का अन्तराल २ भाग करें। १६. भुजा गोल संधि जोड़ से मिली, गोड़ा तक लम्बी करें। १७. अंगुलियों को मिलापयुक्त स्निग्ध, ललित, उपचय, संयुक्त, शंख, चक्र, सूर्य, कमल आदि उत्तम चिन्हों से संयुक्त करें।
वक्षभागकामाप १. वक्षस्थल २४ भाग चौड़ा करें। २. पीत सहित वक्षस्थल की परिधि ५६ भाग रखें। ३. वक्षस्थल के मध्य श्रीवत्रा का चिन्ह बनायें। ४. मय भुजा के वक्षस्थल ३६ भाग करें।