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(देव शिल्प ५. दोनों स्तनों के मध्य अंतराल १२ भाग बनायें ६. स्तनों की चूचियां २ भाग वृत्ताकार बनायें।
चूंचियों के मध्य में १/४ भाग वीटलियां बनायें। ८. वक्षस्थल से नाभि तक १२ भाग अंतराल बनायें।
उदर भाग का माप १. वक्षस्थल रो नाभि के मध्य का भाग उदर कहलाता है। २. नाभि का मुख १ भाग चौड़ा हो। ३. नाभि दक्षिणावर्त रुप में गोल मनोहर शंख के मध्य समान करें। ४. नाभि के मध्य से लेकर लिंग के मूल तक ८ भाग पेडू करें। ५. पेडू में ८ रेखाएं बनाएं।
कटि १८ भाग चौड़ी बनायें। ७. कटि की परिधि ४८ भाग बनायें। ८. तिकूणा (बैठक का हाड़) ८ भाग चौड़ा बनायें। ९. दोनों कूल्हे ६ भाग गोल बनायें १०. स्कन्ध के.सूत से गुदा तक ३६ भाग लम्बा तथा १/२ भाग मोटा रीढ़ का हाड़ रखे। ११, ४ भाग लम्बा लिंग रखें। मूल में २ भाग मोटा मध्य में १ भाग तथा अंत में १/४ भाग मोटा रखें।
सर्वत्र मोटाई से तिगुनी परिधि रखें। १२. दोनों पोतों को आम की गुठली के समान चढ़ाव उतार रुप में ५-५ भाग लम्बे ४ भाग चौड़े पुष्ट
रूप में बनायें।
कमर के नीचे का माप १. दोनों जांधे २४- २४ भाग पुष्ट बनायें। २. दोनों जांध्ये भूल में ११-११ भाग, मध्य में ९-९ भाग अंत में ७-७ भाग रखें। इनकी परिधि सर्वत्र
अपनी मोटाई से तिगुनी होना चाहिये। ३. जांघों से नीचे तथा पीड़ियों के ऊपर दोनों घुटने ८ भाग लम्बे, ४ भाग चौड़े करें। ४. .. घुटने से नीचे टिकुन्या तक २४- २४ भाग दोनों पीड़ियां बनायें। दोनों पीड़ियां मूल में ७- भाग,
मध्य में ६-६ भाग अंत में १३/३ - १३/३ भाग रखें। परिधि मोटाई से तिगुनी रखें। दोनों पगों की चारों टखनों को १-१ भाग करें। परिधि तिगुनी रखें। दोनों पगों के चरण तल १४-१४ भाग लम्बे करें। ठखना से अंगुष्ठ के अग्र भाग १२ भाग लम्बे करें टखनों के पीछे एड़ी२ भाग करें। एडी नीचे २ भाग बगल में कुछ कम मध्य में ऊंची गोल हो। परिधि ६ भाग हो। अंगुष्ठ ३ भाग लम्बा, मध्य में २ भाग, आदि अन्त में कुछ कम चौड़ा हो ।