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(देव शिल्प
(२३८) प्रतिमा का ताल मान . शिल्प शास्त्र में प्रतिमाओं का मान ताल के प्रमाण से किया जाता है। प्रति के मुख, हाथ, पैर सभी अंगोपांग इस प्रकार निर्मित किये जाना चाहिये कि उनका रुप सुडौल एवं सुरुचिपूर्ण लगे।
प्रतिमा के ही बारह अंगुल के मान को एक ताल कहा जाता है। इसी प्रमाण से देव प्रतिमा की ऊंचाई नवताल की अर्थात् १०८ अंगुल के बराबर ग्रहण की जाती है। पद्मासन प्रतिमा का प्रमाण ५६ अंगुल गाना जाता है। सदैव यह स्मरण रखें कि इस मान में प्रयुक्त अंगुल का मान गज या कंबिया का या इंच के गान का अंगुल नहीं है। यहां पर प्रतिगा के अंगुल का ही ग्रहण किया जाता है ।
प्रतिमा के ललाट से दाढो तक चेहरे का माप एक ताल मान कहलाता है। १२ अंगुल का मान इसी के तुल्य आता है। # अपनी मुट्ठी के चतुर्थांश को एक अंगुल मानना चाहिये। ऐसे बारह अंगुल का ताल जानना चाहिये।
विभिन्न प्रतिमाओं की ताल मान सारणी ग्रास
१ताल
गणेश, वाराह, कुमार ६ ताल पक्षी
२ ताल मानव
७ताल हाथी
३ताल सर्व देवियां
८ ताल किन्नर, अश्व
४ताल सर्व देवता, जि.
९ ताल वृषभ, शूकर
५ ताल
राग, बलराम, रुद्र, ब्रह्मा १० ताल वामन बालक
५ ताल
विष्णु, सिद्ध, जिन ५० ताल स्कंध, हनुमान, भूत, चंडी ११ ताल पैताल, भैरव, नरसिंह, हयग्रीव १२ ताल राक्षस
१३ ताल दैत्य, दानव
१४ ताल राहू, भृगु, चामुण्डा १५ ताल क्रूर देवताओं की मूर्ति १६ ताल हिरण्यकश्यप, हिरणाक्ष, १६ साल असुर, जयमुकुल १६ ताल नमुचि, निशुंभ, शुंभ १६ ताल स्वच्छन्द भैरव
२१ ताल सामान्यतः जिन प्रतिमा ९ ताल में निर्मित की जाती है । प्रतिमा के अंगोपांग के मान शास्त्रों में ९ ताल के मान से उद्धृत है। कुछ ग्रन्थों में जिन प्रतिमा १० ताल की बनाने का निर्देश मिलता है।'
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मुख माने कर्तव्या सर्वावयव कल्पयेत्। मत्स्य पुराण २५७/१ #नवत्ताल भवेदचं तालस्य द्वादशांगुलम् ।आंगुलानीज कम्बाया किन्तु रूपस्य तस्यहि || विवेक विलास १/१३५ जिज सहिता, उपमंडन, शिल्प रत्नाकर,
दस ताल पाण लक्चवा -त्रिलोक सार /१८७ करवरदमुष्टेश्चतुर्थाशो चंगुलं परिकीर्तितम् । तदंगुलै दिशांगुलभ चित्तालस्य दीर्घता॥ ६/८२ शुक्राचार्य #जवताल हवइ रुवं रुचरस य बारसंगुलो तालो। अंगुल अष्ठहिसयं ऊढं बासीण छप्पन्नं ।। ४.सा. २/५ जदादेव मणुस्स ७२६याण मुस्सेयो दस णव अट्ठताल पमाणे ग मणिदो । षट खंडागम धवला (पुस्तक ४४०) # जिजांगुल प्रमाणेज साहांगुलशतायुतज ताल मुरदं वितस्तिस्यादेकार्य द्वादशांगुलं तेज मानेलतादिवसधा प्रविकल्पयेत्
वसुनन्दिप्रतिष्ठासार