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(देव शिल्प)
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जिन प्रतिमा का वर्ण
सामान्यतः जिनेन्द्र प्रभु की प्रतिमाएं श्वेत अथवा श्याम वर्ण मे बनायी जाती हैं । चौबीस तीर्थंकरों के अपने -अपने वर्ण में भी तीर्थंकर प्रतिमा स्थापित की जाती है। विशेष रुप से चौबीसी में (चौबीस तीर्थंकरों के एकत्रित जिनालय में ) तीर्थकरों की प्रतिमाएं अपने स्व वर्ण में स्थापित की जाती
प्राचीन लधु चैत्य भक्ति (भगवान गौतम स्वामीकृत) में चौबीस तीर्थंकरों के अपने - अपने वर्ण (रंग) बताये गये हैं -*
• लाल
तीर्थकरों का नाम
वर्ण चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त
श्वेत सुपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ
नील पद्म प्रभ, वासुपूज्य मुनिसुव्रत, नेमिनाथ
हरा आदिनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ , कंचन (स्वर्ण) अभिनन्दन नाथ , सुमतिनाथ, शीतलनाथ, कंचन (स्वर्ण) श्रेयांसनाथ, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, कंचन (स्वर्ण) शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, कंचन (स्वर्ण) नामिनाथ, वर्धमान स्वामी
कंचन (स्वर्ण)
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*यो कुन्देन्दु तुषार हार धवलो, वादिन्दनील प्रभो , दी बन्धूक समप्रभी जिजवृषो दी च प्रियंगु प्रभी। शेषाः षोडश जन्म मृत्यु रहिताः सन्तप्त हेम प्रभास्ते सज्ज्ञान दिवाळराः सुरनुता : सिद्धिं प्रयच्छन्तु न : || ५|| प्राचीन लघु चैत्य भक्ति (भवावाज गौतम स्वामीकृत)
प्रालेयनील हरितारुणपीतभासं, यन्पूर्ति पत्याय सुखावसधमुनीन्दाः। प्यारान्ति सप्ततिशत जिजवल्लभाजां, त्वदय्याजतोऽस्तु सतत मय सुप्रभातम् ।। सुप्रभात स्तोत्रम् /१० श्वे. परंपरा- खतौ च पद्मप्रभुवासुपूज्यौ, शुक्लौ व चंद प्रभुपुष्पनंदनी। शि.र १२/५ कृष्णो पुजः जेमिमुनिसुव्रतो, नीलो श्री मल्लि पावो कजकत्विस षोडशः । शि.र. १२/६