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(देव शिल्प
(२३६)
जिन प्रतिमा के लक्षण
प्रतिमा जिनेन्द्र प्रशु के वीतराग स्वरुप का रुपक है उसमें अनेकों शुभ लक्षण होते हैं। वह मनोज्ञ, आकर्षक, सौम्य, शान्त, वीतराग, श्रीवत्ससहित, खगासन अथवा पद्मासन होना चाहिये। बिम्ब का चेहरा प्रफुल्लित, नेत्र शांत, मुदित, भार्या (पत्नी) से रहित होना चाहिये। प्रतिमा का माप शिल्प शास्त्र में दर्शाये गये मापों से मेल खाता हो। जिन प्रतिमा आयुधादि से रहित सुन्दर, चित्तहर्षक होना चाहिये। यह ध्यान रखें कि कांख एवं मूंछ दाढ़ी के बालों के चिन्ह न हों। दृष्टि ठीक हो। अर्ध उन्मीलित नयन हों।
अरिहन्त प्रतिमा के विशेष लक्षण अरिहन्त तीर्थंकर की प्रतिमा छत्र, चामर, भामंडल, अशोक वृक्ष, सिंहासन आदि अष्ट प्रातिहार्यों से संयुक्त होना चाहिये।
प्रतिमा के नीचे के भाग में नवग्रह हों। प्रतिमा के बायीं ओर यक्षिणी तथा दाहिनी ओर यक्ष होना चाहिये । क्षेत्रपाल का स्थान आसन पीठ के मध्य में हो। यक्ष- यक्षिणियों की प्रतिमा सर्वांगसुन्दर, वाहन, आयुध, वस्त्र, अलंकर, श्रृंगार से संयुक्त होना चाहिये।
सिंहासन में भी दोनों ओर यक्ष, यक्षिणी, सिंह युगल, गज युगल, चंवरधारी देव, चक्रेश्वरी देवी (मध्य में) अवश्य बनायें। चक्रेश्वरी गरुड़ वाहन पर चतुर्भुजी शास्त्रानुकूल बनायें। .
तीर्थंकर प्रतिमा के आसन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं सामान्यतः दो आसनों में निर्मित की जाती है। इन्हीं आसनों से तीर्थंकर प्रभु का मोक्षगमन होता है। ये आसन इस प्रकार है :१. खड्गासन अथवा कायोत्सर्ग आसन २. पद्मासन *
सभी तीर्थंकर प्रतिमाएं इन्हीं दो आसनों में बनाई जाती हैं। तीर्थकरों का जिस आसन से मोक्षगमन हुआ है उसी आसन में भी मूर्ति बनाई जा सकती है। वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों के मोक्षगमन का आसन निम्नानुसार है :
प्रथम ऋषभनाथ, १२वें वासुपूज्य तथा २२ वें नेमिनाथ स्वामी का मोक्षगमन पद्मासन से हुआ है। शेष २१ तीर्थंकरों का मोक्षगमन खड्गासन स्थिति में हुआ है। जिन तीर्थकरों का निर्वाण खगासन से हुआ है उनकी पद्मासन प्रतिमा भी बनाई जा सकती है, इसमें कोई दोष नहीं है।
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*मध्य काल में दक्षिण भारत में पद्मासन के एक भेद अर्धपद्मासन में प्रतिमाएं बनाई गईं । ऐलोरा, पेटण, जिन्तूर एवं अन्य अनेकानेक स्थानों में अर्धपद्मासन प्रतिमाएं मिलती हैं। इनमें बैटक में एक पांव ऊपर तथा एक पाव नीचे रखा जाता है। ये प्रतिमाएं भी समचतुरस संस्थान में बनाई जाती है। इनका प्रमाण पद्मासन प्रतिमाओं की भांति ही होता है।