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(देव शिल्प)
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इसके बाद सात बार शिला को अभिमंत्रित करक रथ या अन्य वाहन में स्थापित करें। यदि पील के लिये शिला चाहिये तो भी इसी विधि का अनुसरण करना चाहिये। शिला लेकर नगर में उत्रावपूर्वक प्रवेश करें तथा ती प्रदक्षिणा पूर्वक जिनालय दर्शन करें।
शिला का निर्णय हो चुकने के पश्चात वहां उत्साहपूर्वक हूं कार मन्त्र से शस्त्रादि को अभिमंत्रित करे तथा शिला एवं शस्त्र दोनों का उचित गान पूजा करें। पश्चात शिला को शस्त्र से तराशकर पुनः गंधादि से पूजा करें। इसके उपरांत पोष काल से दोनों हाथों से उधित पदार्थ का विलेपन करना चाहिये।
शिला प्रक्षालन करने के पूर्व इस मन्त्र का पाठ करें -
ॐ झं वं ह पः क्ष्वीं धवीं स्वाहा,
इस मंत्र का पाठ करते हुए शिलः को धोकर उरा पर सुगंधित जल डालें। इसके बाद शिला को तराशते पूर्व इरा मंत्र का पाठ करे :
ॐ हूं फट् स्वाहा
शिला से प्रतिमा निर्माण की दिशा
यह निर्णय हो जाये कि किस शिला से प्रतिमा का निर्माण करना है तो उसकी दिशा का निर्धारण कर यह भी निश्चित करें कि प्रतिमा का सिर किस भाग में बनेगा ।
जोशिला पूर्व पश्चिम लम्बाई में पड़ी हो उस शिला के पश्चिम भाग में प्रतिमा का सिर बनाना चाहिये।
इसी भांति जो शिला उत्तर दक्षिण दिशा में लम्बाई में पड़ी हो उस शिला के दक्षिण भाग की ओर प्रतिमा का सिर बनाना चाहिये। *
*कवादक्षिणी स्थिता भूमी तु या शिला
प्रतिगायः शिरस्तस्याः कुर्यात पश्चिम रु.म. १/१५