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देव शिल्प
(२३३) शिला परीक्षण की विधि शिला या काष्ठ जिसकी प्रतिमा बनाना इष्ट है, उसका दाग प्रगट करने के लिये निर्मल कोजो के साथ बेल वृक्ष के फल की छाल को पोसकर पत्थर या काष्ठ पर लेप करना चाहिये। ऐसा करने से दाग प्रगट हो जाता है।
यदि दाग ऐसे स्थान पर आने की संभावना हो कि हृदय, मस्तक, कपाल, दोनों स्कन्ध, दोनों कान, मुख, पेट, पीठ, दोनों हाथ, दोनों पैर आदि में किसी एक या अनेक भागों में नीले आदि रंग वाली रेखा हो तो इस शिला का प्रतिमा के लिये उपयोग न करें। अन्य अंगों पर भी यदि ये रेखा हो तो मध्यम है। चीरा आदि दोषों से रहिल स्वच्छ, चिकनी, शीतल अपने रंग के जैसी हो रेखा हो तो दोष नहीं हैं। यदि दाग या रेखा अन्य वर्ण की हो तो महान दोष है। काष्ठ या पाषाण में कील, छिद्र, पोलापन, जीवों के जाले, संधि, कीचड़ अथवा मंडलाकार रेखा हो तो महादोष है।
यदि मंडल जैसा देखने में आये तो मधु के जैसा मंडल हो तो भीतर जुगनू जानें । भरम जैसा मंडल हो तो रेत है। गुड़ के जैसा मंडल हो तो भीतर लाल मेंढक हैं, आकाशी रंग का मंडल हो तो जल है। कपोत वर्ण का मंडल हो तो छिपकली है। मंजीठ रंग मंडल देखने में आये तो मेंढक है। लाल वर्ण का मंडल दिखे तो गिरगिट है। पीले रंग का मंडल देखने में आये तो गोह है। कपिल वर्ण का मंडल दिखे तो चूहा है। काले वर्ण का मंडल देखने में आये तो सर्प है। विचित्र वर्ण का मंडल देखने में आये तो बिच्छू है। इस प्रकार विभिन्न रंग के मंडल प्रगट होने से भीतर अमुक प्राणी है, यह समझें।
उपरोक्त प्रकार के दाग वाले पाषाण या काष्ठ प्रतिमा निर्माण के लिये वर्जित हैं। अन्यथा धन, संतति की हानि होने का कष्ट होगा। अपवित्र स्थान में उत्पन्न चीरा, मसा, नस आदि दोषों से सहित पाषाण या काष्ठ की प्रतिमा कदापि न बनायें।
शिला में शुभ लक्षण यदि पत्थर या काष्ठ में नंद्यावर्त, घोड़ा, श्रीवत्स, कछुआ, शंख, स्वस्तिक, हाथी, गाय, बैल, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य, छत्र, माला, ध्वजा, शिव लिंग, तोरण, हिरण, प्रासाद, मन्दिर, कमल, वन, गरुड़ अथवा शिव की जटा जैसी रेखा दीखती हो तो यह शुभ लक्षण मानना चाहिये।
शिला लाने की प्रक्रिया शिला परीक्षण के उपरांत शिला तराशने के बाद अपने स्थान पर वापस आ जाये। इसके बाद रात्रि में शयन से पूर्व जिनेन्द्र प्रभु का भावपूर्वक र-मरण करें। सिद्धभक्ति एवं णमोकार मन्त्र का पाठ करें। पश्चात निम्न मन्त्र को कह कर शयन करे -
जमोस्तु जिलेन्द्राय ॐ प्रज्ञाश्रमणे जमो नमः केवलिने तुभ्यं नमोस्तु परपेष्टिने हे देवि मम स्वप्ने शुभाशुधं कार्य ब्रूहि हि स्वाहा ।
रात्रि में शयन में स्वप्न में शुभाशुभ लक्षणों का ज्ञान हो जाने के उपरांत प्रातः शिला लाने के लिये जाना चाहिये। वहां जाकर शिला पूजन करके मन में स्मरण करे कि जिस प्रकार पूर्वकाल में नारायण महापुरुषों ने कोटि शिला उठाई थी उसी भांति हे महाशिला, मैं भी तुम्हें उठाता है, तुम शीघ्र चलो।