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(देव शिल्प).
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( २३२)
जिन प्रतिमा निर्माण प्रारंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त
प्रतिमा निर्माता मूर्ति शिल्पी को प्रसन्न चित्त से यथोचित सम्मान कर प्रतिमा निर्माण करने के लिए प्रार्थना करें तथा शिल्पी अत्यंत प्रसन्न मन से मनोहारी जिन बिम्ब बनाने का कार्य शुभ काल में प्रारंभ करे शुभ वार- सोम, गुरु, शुक्र, किन्ही के भगत से बुध भी शुभ नक्षत्र- तीनों उत्तरा, पुष्य, रोहिणो, श्रवण, चित्रा, घनिष्ठा, आर्द्रा मतांतर से - अश्विनी, हरत, अभिजीत, मृगशिर, रेवती, अनुराधा भी शुभ नक्षत्र हैं। शुभ तिथि- २, ३, ५, ७, ११, १३
अथवा जिन तीर्थंकर की प्रतिमा बनानी है उनके गर्भकल्याणक की तिथि शुभ योग- गुरु पुष्य अथवा रवि हस्त योग
शिला लाने के ग्रस्थान करने हेतु नक्षत्र रेवती, श्रवण, हस्त, पुष्य, अश्विनी, पूनर्वसु, ज्येष्ठा, अनुराधा, धनिष्ठा, मृग इन नक्षत्रों में शिला लेने के लिये जाना चाहिये। पूर्व से लगाकर कृत्तिका तक के नक्षत्रों में यात्रा के लिए न जायें।
हस्त, पुष्य, अश्विनी, अनुराधा ये नक्षत्र यात्रा के लिये शुभ हैं किंतु दक्षिण दिशा में जाने के लिए मंगल, बुध एवं रविवार को न जाये।
यात्रा के लिये जाने से पूर्व नक्षत्र, लग्न, गोचर शुद्धि देखकर ही जायें।
प्रतिमा हेतु शिला परीक्षण प्रतिमा के निर्माण के लिये शिला परीक्षण करके ही लाना चाहिये। वर्तमान काल में प्रायः संगमरमर की प्रतिमाएं निर्मित होती हैं। सादे देसी पत्थर की प्रतिमाओं का निर्माण प्राचीन काल से किया जाता रहा है। सुविधा एवं प्रभावना की दृष्टि से संगमरमर की प्रतिमाओं का निर्माण निःसंदेह श्रेयस्कर है। चाहे किसी भी पाषाण की प्रतिमा हो, पाषाण सुलक्षण युक्त होना चाहिये।
__ अनुभवी शिल्पकार के साथ शुभ मुहूर्त में प्रयत्नपूर्वक उत्साह के साथ शिला परीक्षा के लिये पुण्य प्रदेश में अथवा नदी, पर्वत, वन में शिला का अनुसंधान करना चाहिये।
___ शिला सफेद, लाल, काली, पोली, मिश्रवर्ण, कपोत (कबूतर) के वर्ण की, मूंगे के रंग की, कमल की आभा के समान, मंजीठ की आभा के समान अथवा हरे रंग की होवे। शीतल स्निग्ध, सुस्वादु, अच्छे स्वर से युक्त तथा मजबूत सुगंध युक्त, प्रभायुक्त तथा मनोरम होना चाहिये।
ऐसी शिला जिसमें शब्द न हो. बिन्दु रेखा दाग आदि हों, रुखी, दुध युक्त, बदरंग हो, मूर्ति निर्माण के लिये अनुपयोगी है।