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________________ (२३१) (देव शिल्प वष्टि प्रकरण जैनेतर देवताओं की प्रतिमा की दृष्टि एवं द्वार की स्थिति निम्नलिखित सारणी से यह ज्ञात होता है कि ६४ भाग में से कौन से भाग में प्रतिमा की दृष्टि रखना चाहिये , भाग की गणना उदुम्बर (देहली) से ऊपर की तरफ (उत्तरंग) करना चाहिये। प्रासाद के द्वार मान से सर्वदेवों का दृष्टि स्थान उदुम्बर से उत्तरंग तक के ६४ भाग करें। * 3५ ३७ देव का नाम सृष्टि का स्थान आदि तत्व १ सृष्टि तत्व ३ तत्व ५ अष्टि तत्व ७ आयुश्तत्व ९ लक्ष तत्व ११ विज्ञ तत्व १३ प्राज्ञ तत्व १५ शांति तत्व १७ अव्यक्त १९ व्यक्ताव्यक्त २१ व्यक्त शेष नाग जलशायी गरुड़ मातृगण कुबेर ३३ देव का नाम दृष्टि का स्थान भंग - वाराह अवतार उमा- रुद्र बुद्ध भगवान ब्रह्मा सावित्री दुर्यासा, अगस्त्य, नारद लक्ष्मी नारायण धाता- ब्रह्मा शारदा गणपति पद्मासन ब्रह्मा हरसिद्धि ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, जिन शुक्राचार्य चंडिका भैरव वैताल २३ * शिल्प रत्नाकर अ- ४ श्लोक – २०६ से २१३ आय भागे भजेदवारमष्टमयत: त्यजेत्।। सप्तमा सप्तमे रटिषेसिंहे बजे शुभा ।। प्रा. पंजरी १६५ पष्ट भावास्य पंचाशे लक्ष्मीनारायणस्यदक् । शयनाशि लिंपालि द्वारार्वन व्यतिक्रपात् ।। प्रा.मजसी १६६
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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