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________________ (देव शिल्प प्रतिमा निर्माण के द्रव्य सूर्यकान्त मणि, चन्द्रकांत तथा सभी रत्न, मणियों की प्रतिमाएं सर्वगुणयुक्त होती हैं। सुवर्ण, रजत, तांबा धातुओं की प्रतिमा बनाना श्रेष्ठ है। पीतल की प्रतिमा भी बना सकते हैं किन्तु अन्य मिश्र धातु जैसे कांसा आदि की प्रतिमाएं नहीं बनाना चाहिये । यदि काठ की प्रतिमा बनवाना इष्ट हो तो श्री पर्णी, चन्दन, बेल, कदम्ब, पियाल, गूलर और शीशम की काष्ठ ली जा सकती है। इन वृक्षों की जिस शाखा से प्रतिमा बनाना हो, वह निर्दोष तथा वृक्ष पवित्र भूमि में उगा हुआ हो । पाषाण में संगमरमर अथवा ग्रेनाइट की प्रतिमा बनाना श्रेष्ठ है। निर्दोष दाग रहित श्वेत संगमरमर की प्रतिमा की आभा निश्चय ही उपासक को दर्शन मात्र से प्रफुल्लित करती है। इतना अवश्य ध्यान रखें कि धातु निर्मित प्रतिमाओं के लिए उपयोग की जाने वाली धातु नई हो। पुराने बर्तनों आदि को गलाकर प्रतिमा कदापि न बनवायें। यह महा अशुभ तथा अनिष्टकारी है। विभिन्न द्रव्यों की प्रतिमा बनाने का फल प्रतिमा निर्माण द्रव्य लकड़ी या मिट्टी मणि रत्न स्वर्ण रजत ताम्र पाषाण परिणाम आयु, श्री, बल, विजय प्राप्ति सर्वजन हितकारी २२८ पुष्टि लाभ यश लाभ सन्तति लाभ अत्यधिक भूमि लाभ वृहत्संहिता ४ / ५ पृ४०० पोली एवं कृत्रिम द्रव्यों की प्रतिमा का निषेध वर्तमान युग में अनेकों कृत्रिम द्रव्यों की प्रतिमायें निर्मित की जाने लगी हैं। प्लास्टिक, एक्रिलिक, नायलोन आदि की प्रतिगायें या आकृतियां बनने लगी हैं। प्लास्टर ऑफ पेरिस की भी मूर्तियाँ आजकल सामान्यतः देखने में आती हैं। प्लास्टिक/एक्रिलिक प्रतिमा में नाइटलैम्प लगाकर उसे सजावट के काम में लाने लगे हैं। टाइल्स में भी प्रतिमायें या भगवान की फोटो लगाने लगे हैं। ये सभी फोटो अथवा प्रतिमायें पूजा के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ये अशुभ एवं अनिष्टकारक हैं । धातु की प्रतिमा ठोस होना आवश्यक है। उसमें पोलापन किंचित भी नहीं होना चाहिये । अन्यथा भीषण संकटों का सामना करना पड़ सकता है। पोली मूर्तियों की पूजा करना उचित नहीं है। एक्रिलिक, प्लास्टिक आदि की मूर्तियां सामान्यतः पोली ही बनती है। चांदी, सोना अथवा पीतल की भी पोली मूर्तियों की न तो पूजा करना चाहिये, न ही इनकी प्राण प्रतिष्ठा करानी चाहिये। पोली मूर्तियों की पूजा प्रतिष्ठा अत्यंत अनिष्टकारक है। प्लास्टिक अथवा कृत्रिम रसायनों से निर्मित ठोस प्रतिमा भी पूज्य नहीं है। केवल शुद्ध धातु अथवा काष्ठ अथवा पाषाण की शास्त्रोक्त प्रतिमायें ही पूजा प्रतिष्ठा के योग्य हैं।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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