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________________ (देव शिल्प) मंदिर में स्थापित की जाने योग्य प्रतिमा का आकार शित पशास्त्र में गृह दैलमालय एवं मंदिर में पूजनीय प्रतिमाओं के आकार के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिये हैं। यह विवेक रखना अत्यंत आवश्यक है कि किस आकार की प्रतिमा मन्दिर में स्थापित की जाये। एक हाथ से छोटे आकार के मन्दिर में स्थिर प्रतिमा रखने का निषेध किया है। इस स्थिति में केवल चल प्रतिमा ही रखना चाहिये । प्रतिमा के आकार की गणना मन्दिर के एवं द्वार के आकार के अनुरुप की जाती है। _गृह चैत्यालय में एक से बारह अंगुल तक की प्रतिमा की ही पूजा हेतु स्थापना करना उचित है। इससे अधिक आकार की प्रतिमा मन्दिर में ही पूजी जानी चाहिये । चूँकि विषमांगुल की प्रतिमाएं ही पूजा में शुभफल देती हैं अतः ग्यारह अंगुल तक की ही प्रतिमा गृह मन्दिर में रखना चाहिये। ग्यारह अंगुल से नौ हाथ तक की प्रतिमाओं की पूजा मन्दिर में ही करना चाहिये । ग्रन्थांतर में सोलह हाथ तक की प्रतिमा मन्दिर में पूजने योग्य कही गई है। दस हाथ से छत्तीरा हाथ तक की प्रतिमा पृथक-पृथक एवं बिना शिखर के स्थापित की जानी चाहिये। छत्तीस हाथ रो पैंतालीस हाथ तक की प्रतिमा ऊंचे चबूतरे पर ही स्थापित की जानी चाहिये। तात्पर्य यह है कि वृहदाकार प्रतिमाओं के अनुपात में मन्दिरों का निर्माण संभव नहीं है अतएव इस भांति की प्रतिमाएं खुले में ही स्थापित की जाती हैं। दक्षिण भारत में स्थित श्रवणबेलगोला की गोमटेश्वर बाहुबली की ५७ फुट ऊंची प्रतिमा सारे विश्व में विख्यात है। र्यादे इतनी विशाल प्रतिमा को आच्छादित करके मन्दिर बनाया जाये तो प्रमाण के अनुकूल न होने के कारण सुफलदायी नहीं होगा। अतएव स्थापित की जाने वाली प्रतिमा का आकार मात्र भक्ति के अतिरेक में निश्चित न करें। बल्कि शास्त्र की आज्ञा के अनुरूप ही करें। रुप मंडन १/७-८-९, मत्स्य पुराण २५७-२३ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - %2जैक हस्तादितोऽन्य ने प्रासादें स्थिरता नयेत ! स्थिरं जा स्थापयेत् पोहे, गृहीणां दव.कब्दियत् ।। शिल्पश्मृति बा.वि. अ.६/१३० *आस्भकांगुला व पर्यन्तं द्वादशांगुला। गृहेषु प्रतिमा पूज्या नाधिका शरयते ततः ।। ॐ. मं. १/७ तच जवहस्तान्त पूजनीया सुरालवे । दशहस्तादितों वाऽर्चा प्रासदिन विनाऽर्चयेत् ।। रु. मं. १/८ दशादि करषष्ठया (करवृदया) तु षटत्रिंशत् प्रतिमा (:) पृथक। वाणवेद करान् याचद चतुष्का (चतुष्पद्याम्) पूजयेत् सुधीः ।। १/९ रु.मं. आषोडशा तु प्रासादे कर्तव्या माधिका ततः।। मत्स्य पुराण. २५७/२३
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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