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देव शिल्प
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वेदी की सजावट
वेदी पर तीर्थकर प्रभु की प्रतिमा की स्थापना करने के उपरांत वेदी की सजावट भी विभिन्न रूपों में की जाती है। वेदो में नीचे अष्ट मंगल, अष्ट प्रातिहार्य, तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न, अभय दृश्य (जिसमें सिंह पूर्वी एक साथ जल पीते हैं) इत्यादि दृश्यों की चित्रकारी अथवा बेलबूटे आदि रुपक बनाना चाहिये।
सर्वज्ञदेव के पाद पीठ में नवग्रह की स्थापना करना चाहिये। जिन मन्दिर के गर्भगृह की वालों के अन्दर के भाग में तीर्थो की रचना की चित्रकारी, तोर्थकरों एवं महापुरुषों की जीवन गाथा के अंश की कलाकृतियां कराना चाहिये। चित्रकारी में युद्ध के दृश्य, क्रूर दृश्य, दानवों के चित्र, कंटीली झाड़ी, उजाड़ गांवों के चित्र कदापि न बनायें। संसार मधु बिन्दु दर्शन, षट्लेश्या दर्शन इत्यादि धर्मवर्धक दृश्यों की चित्रकारी से वेदी की शोभा बढ़ती है साथ ही उपासकों को सत् प्रेरणा भी मिलती हैं।
वेदी प्रतिमाओं की ऊंचाई का मान
द्वार की ऊंचाई का आठ, सात या छह भाग करें। ऊपर का एक भाग छोड़ दें। शेष भाग के पुनः तीन भाग करें। उसमें ऊपर के दो भाग की प्रतिमा बनायें तथा एक भाग की पौठ बनायें ।
विशिष्ट जैनेतर प्रतिमाओं के लिये मान
द्वार की ऊंचाई का आधा भाग के बराबर शयनासन प्रतिभा की पीठ बनायें । जलशय्या चाली प्रतिमा का मान द्वार की चौड़ाई से अधिक न रखें।