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देव शिल्प
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३.
गर्भगृह था शिखर के नीचे के पायचे के चौड़ाई के बराबर लम्बा ध्वजादण्ड बनायें। यह ज्येष्ठ मान है। उसका बारहवां भाग कम करें तो मध्यम मान आयेगा। यदि छठवां भाग कम करें तो कनिष्ठ मान आयेगा । *
४.
प्रकाश वाले अर्थात् बिना परिक्रमा वाले मन्दिर का ध्वजादण्ड मन्दिर की चौड़ाई के बराबर लम्बा बनायें। परिक्रमा वाले मन्दिर (अथात् सांधार) मन्दिर का ध्वजादण्ड मध्य मन्दिर के बराबर अर्थात् गर्भगृह के दोनों तरफ दीवार तक की चौड़ाई के बराबर बनायें। परिक्रमा और उसकी दीवार को छोड़कर सिर्फ गर्भगृह की दीवार गिनें !'
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ध्वजादण्ड की चौड़ाई का मान
एक हाथ (२ फुट ) चौड़ाई वाले प्राशाद के ध्वजादण्ड की चौड़ाई पौन अंगुल / इंच रखें। बाद में पचास हाथ (१०० फुट) तक प्रति हाथ ( २ फुट ) आधा-आधा अंगुल / इंच बढ़ाएं। # शिखर कलश से ध्वजा की ऊंचाई का फलाफल
शिल्पशास्त्रों में शिखर पर लगाई जाने वाली पताका की ऊंचाई का एक निश्चित अनुपात बताया गया है। शिखर के सबसे ऊपर के भाग में कलश आरोहित किया जाता है । शिखर पर लगाई जाने वाली पताका कलश से भी ऊंची लहराना चाहिये। जितनी अधिक ऊंची ध्वजा होगा उतना ही श्रेष्ठ परिणामों की प्राप्ति होगी।
शिखर कलश से ध्वजा की ऊंचाई के अनुरूप फल का उल्लेख अग्रलिखित सारणी में उद्धृत है $शिखर कलश से ध्वजा की ऊंचाई
फल
हाथ में
फुट में
9
२
२
४
३
४.
६
८
१०
१२
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निरोगता
पुत्रादि की वृद्धि सम्पत्ति वृद्धि
राज सुख, राज्य वृद्धि
सुभिक्षता वृद्धि
* मूल रेखा प्रमाणेन ज्येष्ठः स्वाद् दण्डसंभवः । मध्यमो द्वादशांशोनः षहंशोनः कलिष्टकः । अ. सु. १४४ ** दण्डः प्रकाशे प्रासादे प्रासादकर संख्यया सांधकारे पुनः कार्यो मध्य प्रासाद मानतः ॥ विवेक विलास १/१७९ # एक हस्ते तु प्रासादे दण्डः पादौनमंगुलम । कुर्यादधौगुला वृद्धिर्यावत्पंताशदस्तकम् ।। प्रा.मं. ४ / ४३
# हत्थे पासाए दंड पडणंगुलं भवे पिंडं । अमंगुलवुद्द्दिकमे जाकर पास कन्दुए। व. सा. ३/३४ $ आशाधर प्रतिष्ठा सारोद्धार