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________________ (देव शिल्प (२११) ध्वजाधार स्थान निश्चित करने की विधि प्रथम विधि - शिखर की ऊंचाई के छह भाग करें। ऊपर के छठवें भाग के पुनः चार भाग करें। इनमें से नीचे का एक भाग छोड़कर दाहिने प्रतिस्थ में ध्वजाधार बनायें । अर्थात ऊंचाई के चौबीस भाग करके बाइरावें भाग में ध्वजाधार बनायें। ध्वजाधार का अन्य नाम स्तम्भ वेध है।* द्वितीय विधि - शिखर की रेखा के ऊपर के आधे भाग के तीन भाग करें। ऊपर के तीसरे भाग के पुनः चार भाग करें। इसमें नीचे का एक भाग छोड़कर उसके ऊपर के भाग में ध्वजाधार बनाएं। यह ईशान अथवा नेऋत्य कोण में प्रासाद के पिछले भाग में दाहिने प्रतिरथ में दीवार के छटवें भाग जितना मोटा बनायें । ध्वजाधार की मोटाई दीवार का छठवां भाग रखें। ध्वजादण्ड को मजबूत रखने के लिए रतम्भका रखी जाती है। उसकी ऊंचाई ध्वजाधार से आमलसार की ऊंचाई तक रखें । उसकी मोटाई प्रासाद के मान के बराबर हस्तांगुल (जितने हाथ का हो उतने अंगुल) रखें। उसके ऊपर कलश रखें। ध्वजादण्ड एवं स्तम्भिका को अच्छी तरह यज्र बन्ध करें। ध्वजादण्ड की रचना ध्वजादण्ड बढ़िया लकड़ी का बनाना चाहिये जिसमें न तो गांठे हो न ही पीलापन। ध्यजादण्ड सुन्दर एवं गोलाकार बनायें। दण्ड में पर्व या विभागों की संख्या विषण तथा ग्रन्थी (या चूड़ी) राम संख्या में रखना चाहिए। % *स्वायाः षष्टपे भागे तदश पाटवर्जिते। बजाधारस्तु कर्तव्यः प्रतिरये च दक्षिणे ।। ज्ञान प्र.दी.अ./.९ **स्तम्भ वेधस्तु कर्तव्यो भित्याश्च घष्टमांशकः । घण्टोदय प्रमाणेन स्तम्भिकोदयः कारयेत ।। पाम हस्तांगुल विस्तार स्तस्वाज़ कलशो भवेत् ।ज्ञान प्र.दी.अ ५ सुवृतः सारदारुश्च वन्धिकोटर वर्जितः। पर्वभिषि कार्यः समवन्धि सुखावहः ।। प्रा. मं ४/४४
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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