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(देव शिल्प)
(२०१०
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पताका
ध्वजा (पताका) पाटली है
ध्वजा का अर्थ पताका या झण्डे से है । ध्वजा से पाटली
तात्पर्य है वस्त्र से निर्मित एक टुकड़ा जो एक डंडे में लगाया जाता है तथा यह ध्वजा अपने धारण करने वाले के अस्तित्व का द्योतक है। यदिध्वजा मंदिर पर लगी है तो मंदिर होने की सूचना देती है । दूर से हो ध्वजा को देखकर उसके आकार, रंग के अनुरुप मंदिर, महल का अनुमान लग जाता है । राजा अथवा राष्ट्रप्रमुख के महल पर लगी ध्वजा उसके सत्तापक्ष के अस्तित्व को प्रकट करती है । मन्दिर के अतिरिक्त राष्ट्र, राजनैतिक दल,
संगठनों को भी अपनी-अपनी ध्वजा होती है। ध्वजा दंड
मन्दिरों में ध्वजा लगा- एक मंगल कार्य भी है क्योंकि ध्वजा अष्ट मंगल द्रव्यों में से एक है। ध्वजा का आरोपण एक ध्वजादण्ड के सिरे पर लगाकर उसे ध्वजाधार से मजबूती से कस दिया जाता है। शिल्पशास्त्रों में ध्वजा, ध्वजादण्ड, ध्वजाधार के पृथक-पृथक प्रमाण दिये गये हैं।
ध्वजा वस्त्र की ही बनाना चाहिये। ध्वजा के आकार
का तांबे या चांदी का पता काटकर उसे ध्वजा के स्थान पर THANI
लगाने की प्रथा वर्तमान में देखी जा रही है किन्तु शास्त्रों में वस्त्र निर्मित ध्वजा का ही उल्लेख प्राप्त होता है। अतएव धातु के पतरे की ध्वजा बनाने से ध्वजा लगाने का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
___ध्वजा का आरोपण निश्चित स्थान एवं दिशा में ही ध्वजा, ध्वजाधार एवं पाटली
करना आवश्यक है । यदि वातावरण के प्रभाव से ध्वजा फट जाती है अथवा बदरंग हो जाती है तो इसे शीध्रतिशीघ्र परिवर्तित कर देना आवश्यक है। फटी एवं बदरंग ध्वजा अशुभ लक्षण उत्पन्न करती है।
मन्दिर के शिखर पर शोभा के लिए झण्डा या पताका लगाई जाती है। यह वस्त्र अथवा धातु की निर्मित होती है तथा दूर से ही उपासकों को देवस्थान होने की सूचना देती है। पताका मन्दिर की शोभा के स्थान पर शुभ भी है। अतः जैन एवं वैदिक सभी मन्दिरों में पताका लगाने की परम्परा है।
ध्वजाधार